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अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे सुप्रीम कोर्ट के ये पांच जज

सदियों पुराने अयोध्या विवाद की सुनवाई पूरी हो गई है और अब कुछ घंटों के बाद सुप्रीम कोर्ट ये फैसला सुना देगा कि विवादित जमीन का क्या होगा। 40 दिन की बहस के बाद सुनवाई पूरी हुई और अब पूरा देश फैसले पर नज़रें गड़ाए हुए है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 09, 2019 7:36 IST
अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे सुप्रीम कोर्ट के ये पांच जज- India TV Hindi
अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाएंगे सुप्रीम कोर्ट के ये पांच जज

नई दिल्ली: सदियों पुराने अयोध्या विवाद की सुनवाई पूरी हो गई है और अब कुछ घंटों के बाद सुप्रीम कोर्ट ये फैसला सुना देगा कि विवादित जमीन का क्या होगा। 40 दिन की बहस के बाद सुनवाई पूरी हुई और अब पूरा देश फैसले पर नज़रें गड़ाए हुए है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले को सुना और अब यही पीठ ऐतिहासिक फैसला सुनाने के करीब है। पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर हैं। आईए बताते हैं इस फैसले को सुनाने जा रहे इन जजों का परिचय क्या है।

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जस्टिस रंजन गोगोई, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

जस्टिस रंजन गोगोई 3 अक्टूबर 2018 को देश के मुख्य न्यायधीश बने। रामजन्म भूमी केस में उनकी सक्रिय भूमिका होने की वजह से ही आज ये विवाद सुलझने की स्थिति में पहुंच गया है। जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने करियर की शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट से की जहां 2001 में वो जज भी बने। वर्ष 2011 में रंजन गोगोई ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में मुख्य न्यायधीश के रूप कार्यभार संभाला। 

जस्टिस गोगोई 23 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट के जज बने। 2018 में बतौर चीफ जस्टिस बनने के बाद उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक मामलों को सुना जिसमें अयोध्या केस के अलावा एनआरसी और जम्मू-कश्मीर पर कई महत्वपूर्ण याचिकाएं शामिल हैं।

जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े
अयोध्या केस पर फैसला सुनाने वाले पैनल में दूसरा नाम जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े का है जो जस्टिस गोगोई के रिटायरमेंट के बाद देश के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। जस्टिस बोबड़े ने अपने करियर की शुरुआत 1978 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से की। लंबे समय तक वक़ालत करने के बाद 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज बने। 2012 में जस्टिस बोबड़े मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने और 2013 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज चुने गये। 
नवंबर, 2016 में एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई थी। इस फैसले में जस्टिस बोबडे भी शामिल थे। अब 17 नवंबर के बाद वो एक नई भूमिका में देखे जायेंगे। जस्टिस बोबड़े 23 अप्रैल, 2021 को रिटायर होंगे।

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़
अयोध्या केस से जुड़े फैसले में तीसरा नाम जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ का है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 13 मई 2016 को सुप्रीम कोर्ट के जज का पदभार संभाला था। उनके पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या केस के अलावा सबरीमाला, भीमा कोरेगांव और समलैंगिकता जैसे बड़े मामलों में पैनल का हिस्सा रह चुके हैं।
 
जस्टिस अशोक भूषण
जस्टिस अशोक भूषण ने अपने करियर की शुरुआत 1979 में बतौर वकील के रूप में इलाहाबाद हाईकोर्ट से की। लंबे समय तक वकालत करने के बाद 2001 में वो इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए। इसके बाद 2014 में जस्टिस अशोक भूषण का केरल हाईकोर्ट में ट्रांसफर हो गया, जहां उन्हें जज बनाया गया। इसके एक साल बाद 2015 में वो चीफ जस्टिस बन गये। 13 मई 2016 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपना कार्यभार संभाला।

 जस्टिस अब्दुल नज़ीर
अयोध्या मामले की बेंच में शामिल जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने 1983 में कर्नाटक हाईकोर्ट में वकालत की शुरुआत की। बाद में उन्होंने 2003 में बतौर एडिशनल जज और 2004 में परमानेंट जज के रूप में काम किया। फरवरी, 2017 में कर्नाटक हाईकोर्ट के जज से प्रमोट होकर वो सुप्रीम कोर्ट के जज चुने गये। जस्टिस नज़ीर देश के उन चुने हुए जजों में शामिल हैं जो बिना किसी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने सुप्रीम कोर्ट के जज बने हैं। सुप्रीम कोर्ट में अब्दुल नजीर अकेले ऐसे मुस्लिम जज हैं जिन्होंने 2017 में विवादास्पद ट्रिपल तलाक मामले की सुनवाई की और राम मंदिर पर उनका फैसला न्याय की दुनिया में हमेशा चर्चित रहेगा। 

सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस ऐतिहासिक मामले में पहले मध्यस्थता का रास्ता अपनाने को कहा गया था, लेकिन ये सफल नहीं हो सका था। इसी के बाद 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक इस मामले की रोजाना सुनवाई चलती रही। अदालत ने हफ्ते में पांच दिन इस मामले को सुना और अब सांसे रोक कर पूरा हिंदुस्तान फैसले का इंतजार कर रहा है।

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