Friday, November 15, 2024
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अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रखा

राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: March 06, 2019 12:13 IST
Supreme Court | PTI File Photo- India TV Hindi
Supreme Court | PTI File Photo

नई दिल्ली: राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। इस मामले में सभी पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दीं, जिन्हें सुनने के बाद अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हिंदू महासभा ने इस विवाद में मध्यस्थता का विरोध किया और कहा कि इसके प्रयास पहले भी हो चुके हैं, जिनका कोई नतीजा नहीं निकला। वहीं, मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने मध्यस्थता के नियमों के बारे में बताया। निर्मोही अखाड़ा मध्यस्थता के पक्ष में रहा। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर विचार किया और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

इससे पहले कोर्ट ने बीती 26 फरवरी को कहा था कि वह 6 मार्च को आदेश देगा कि मामले को अदालत द्वारा नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने विभिन्न पक्षों से मध्यस्थता के जरिए इस दशकों पुराने विवाद का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान किए जाने की संभावना तलाशने को कहा था।

जीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि यदि इस विवाद का आपसी सहमति के आधार पर समाधान खोजने की एक प्रतिशत भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए। इस विवाद का मध्यस्थता के जरिए समाधान खोजने का सुझाव पीठ के सदस्य जस्टिस एसए बोबडे ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया था। जस्टिस बोबडे ने यह सुझाव उस वक्त दिया था जब इस विवाद के दोनों हिंदू और मुस्लिम पक्षकार यूपी सरकार द्वारा अनुवाद कराने के बाद शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में दाखिल दस्तावेजों की सत्यता को लेकर उलझ रहे थे।

पीठ ने कहा था, ‘हम इस बारे में (मध्यस्थता) गंभीरता से सोच रहे हैं। आप सभी (पक्षकार) ने यह शब्द प्रयोग किया है कि यह मामला परस्पर विरोधी नहीं है। हम मध्यस्थता के लिये एक अवसर देना चाहते हैं, चाहें इसकी एक प्रतिशत ही संभावना हो।’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा था कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिए कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं, वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा था कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है।

पीठ ने पक्षकारों से पूछा था, ‘क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिये है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं।’ पीठ ने मुख्य मामले को 8 सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुये रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वह सभी पक्षकारों को 6 सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की अनुदित प्रतियां उपलब्ध कराये। कोर्ट ने कहा था कि वह इस अवधि का इस्तेमाल मध्यस्थता की संभावना तलाशने के लिए करना चाहता है।

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