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अटल जी कहकर गए हैं- ‘लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं’, पढ़िए उनकी 'अजर' कहानी

सियासी परिवेश में अटल जी को राजनीति का साधू कह लीजिए। क्यों कहिए? इसका जवाब आपको इस लेख में मिल जाएगा। पढ़िए, उनकी पुण्यतिथि पर कुछ खास।

Written by: Lakshya Rana @LakshyaRana6
Updated on: August 16, 2020 8:32 IST
सियासी परिवेश में अटल जी को राजनीति का साधू कह लीजिए। क्यों कहिए? इसका जवाब आपको इस लेख में मिल जाएग- India TV Hindi
Image Source : PTI सियासी परिवेश में अटल जी को राजनीति का साधू कह लीजिए। क्यों कहिए? इसका जवाब आपको इस लेख में मिल जाएगा।

आप सियासत में ‘स’ से साकार थे, ‘य’ से यक्ष थे, फिर ‘स’ से सर्व सम्मानित हुए और ‘त’ से देश हित में सदैव तत पर रहे। निष्ठा, नीयत, निरंतरता, नैतिकता और नफे-नुक्सान से ऊपर सियासत के नए संस्कार लिखने वाले आप ही तो ‘अटल’ हैं! शानदान लेखनी, जानदार व्यक्तित्व, बेमिसाल वक्तव्य और तीनों को मिला दीजिए तो बनते हैं अटल बिहारी वाजपेयी

सियासी परिवेश में अटल जी को राजनीति का साधू कह लीजिए। क्यों कहिए ये भी पढ़िए, राजनीति में उनके तमाम लोगों से सैकड़ों मतभेद रहे, लेकिन मतभेदों ने कभी मन में घर नहीं किया। राजनीति खूब की मगर सिर्फ मतभेद के आधार पर, मनभेद उनका किसी से नहीं रहा। सदन में जिनके साथ तीखी बहस हुई, सदन के बाहर उनका हाल चाल भी उन्होंने खूब जाना। लेकिन, ये उनकी शुरूआत नहीं थी, शुरुआत तो हुई थी ग्वालियर से।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा भी वहीं हुई लेकिन फिर आगे कि पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई। यहां से उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में MA किया और करियर के लिए चुनी पत्रकारिता। फिर, राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया। लेकिन, नीयति को शायद ये मंजूर नहीं था। 1951 में भारतीय जन संघ की स्थापना हुई और अटल जी बने उसके संस्थापक सदस्य। इसी के साथ उन्होंने खबरों को संपादन बंद कर दिया, माने पत्रकारिता छोड़ दी। लेकिन, पत्रकारिता छोड़ने का मतलब ये नहीं होता कि कलम की धार मर जाए। उन्होंने कई कविताएं लिखीं। 

उन्होंने लिखा कि- “ठन गई, मौत से ठन गई. जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई, मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं, मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ? तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा, मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर, बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं, प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला, हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए, आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है, पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई, मौत से ठन गई।

ये तो उनकी लेखनी की झलक मात्र है। उन्होंने अपने जीवन में बहुत लिखा और बहुत कुछ कहा। उम्मीद करिए कि वर्तमान के सियासतदान उनके कहे और उनके दिए राजनीति के नए संस्कारों को सहेजकर रख सकें। क्योंकि, अटल जी ने अपनी कविता में वादा किया  है कि ‘लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं’। और, वादा पूरा हुआ तो सियासत को उनका सामना करना पड़ सकता है।

उन्होंने पहली बार राष्ट्रवादी राजनीति में अपने छात्र जीवन के दौरान कदम रखा था। साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया था। लेकिन, तब शायद वो खुद को भविष्य में राजनेता के तौर पर परख नहीं पाए थे। लेकिन, वक्त ने उन्हें पहचान लिया था और भविष्य उनकी सियासी कुशलता और शैली को भारत के राजनीतिक रण में मंद-मंद गढ़ता देख मुस्कुराने लगा था। फिर, तमाम ऊपर लिखी गई घटनाओं से गुजरते हुए साल आया 1957 और उन्होंने लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा। बलरामपुर से उन्हें जीत हासिल हुई।

इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए और 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 1968 से 1973 तक भारतीय जन संघ के अध्यक्ष रहे। और, देश के 10वें प्रधानमंत्री भी बने। वह तीन बार प्रधानमंत्री बने, पहली बार 16 मई 1996 से 1 जून तक, दूसरी बार 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक और तीसरी बार 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई से 2004 तक।

हालांकि, 16 मई 1996 को जब पहली बार वो प्रधानमंत्री बने, उसके 13 दिन बाद ही उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे। 1998 के आम चुनावों में गठबंधन की सरकार बनाई और वो फिर प्रधानमंत्री बने। हालांकि, इस बार भी उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 13 महीनें ही चल सकी। लेकिन, उन्होंने एक बार फिर सरकार बनाई और ये साल था, 1999। अब वो लगातार दूसरी बार पीएम बने, ये पहला मौका था जब जवाहर लाल नेहरू के अलावा पहला कोई शख्स लगातार दो बार पीएम बना था। ये सरकार उन्होंने पूरे पांच साल चलाई।

अब अटल जी हमारे बीच नहीं है। भारत के प्रति उनके निस्वार्थ समर्पण और पचास से अधिक सालों तक देश और समाज की सेवा करने के लिए 27 मार्च, 2015 को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इससे पहले उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वहीं, 1994 में उन्हें भारत का 'सर्वश्रेष्ठ सांसद' भी चुना गया।

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