गुवाहाटी: नबारूण गुहा अपनी कुर्सी पर बेचैनी की हालत में बैठे हुए हैं। गुहा पत्रकार हैं और जब उन्हें पता चला कि उनका नाम अंतरिम और अंतिम मसौदे में शामिल नहीं हुआ है उसके बाद से वह दो बार एनआरसी सेवा केंद्र (एनएसके) का दौरा कर चुके हैं। उन्हें अब भी विश्वास नहीं है कि शनिवार को जब रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स का अंतिम प्रकाशन होगा तो उनका नाम उसमें शामिल होगा अथवा नहीं। गुहा प्रख्यात इतिहासकार, अर्थशास्त्री और असम के कवि अमलेंदु गुहा के प्रपौत्र हैं और उनका परिवार 1930 से ही गुवाहाटी के पॉश उलुबारी इलाके में रह रहा है। उनके परिवार के सभी लोगों का मसौदा एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजी) में नाम है लेकिन उनका नहीं है।
गुहा ने कहा, ‘‘मेरे माता-पिता का देहांत हो चुका है, इसलिए उनका नाम शामिल किए जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। मेरे पिता का नाम 1966 और 1970 की मतदाता सूची में शामिल था। मैंने उनके विरासत कोड का इस्तेमाल कर अपने वोटर पहचानपत्र के माध्यम से उनसे जुड़ा होना दिखाया था। फिर भी मेरा नाम शामिल नहीं किया गया।’’ गुहा ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘वास्तव में इससे मुझे परेशानी होती है। मुझे नहीं पता कि मेरा नाम अंतत: शामिल होगा या नहीं। अगर एक गलती दो बार होती है तो यह तीसरी बार भी हो सकती है।’’
गुहा अकेले नहीं हैं। असम में लाखों घरों में विवादास्पद एनआरसी प्रकाशन से पहले चिंता व्याप्त है। इस प्रकाशन से भारतीय नागरिकों की पहचान के साथ ही बांग्लादेश के अवैध प्रवासियों की भी पहचान होगी। मोनोवारा बेगम (45) घरेलू सहायिका हैं और एनआरसी प्रकाशन के इंतजार में हैं। हालांकि उनका और उनके पति लालबहादुर अली का नाम मसौदा एनआरसी में है लेकिन उनके चार बच्चों -- लैला, अन्ना, मोनिरूल और शाहिदुल के नाम इसमें शामिल नहीं हैं। उसने कहा, ‘‘मैं इतनी चिंतित हूं कि रात में सो नहीं पाती। मुझे नहीं पता कि अगर अंतिम सूची में उनका नाम नहीं आता है तो क्या होगा।’’ जब सरकार के आश्वासन के बारे में उन्हें बताया गया कि जिनके नाम सूची में नहीं हैं उन्हें हिरासत में नहीं लिया जाएगा और वे विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपील कर सकते हैं तो वह सुबकने लगीं। उन्होंने कहा, ‘‘हम सुनवाई में शामिल होकर अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर चुके हैं। अगर अब हमें न्यायाधिकरण जाना पड़ा तो हमें घर और जमीन बेचनी होगी।’’
ग्वालपाड़ा जिले के सोलमारी कल्याणपुर गांव के गणेश राय स्थानीय राजबांगशी समुदाय के हैं लेकिन उन्हें आशंका है कि उनका नाम अंतिम एनआरसी में शामिल नहीं होगा क्योंकि उन्हें डी-वोटर (संदेहास्पद) घोषित किया गया है। उन्होंने 2016 के विधानसभा चुनावों में वोट दिया था और उनकी बदली स्थिति के बारे में कभी भी नोटिस नहीं मिला जो एनएसके पर पूछताछ के दौरान उन्हें पता चला। बोडोलैंड स्वायत्तशासी क्षेत्र जिले (बीटीएडी) के कई बोडो और चाय आदिवासी चिंतित नहीं हैं। उनका कहना है कि वे असम के स्थानीय निवासी हैं और कोई भी उन्हें उनकी जमीन से नहीं हटा सकता।
राजनीतिक दलों द्वारा गलत तरीके से लोगों को एनआरसी में शामिल करने या निकाले जाने के आरोपों के बीच इसे शनिवार को सार्वजनिक किया जाएगा और राज्य प्रशासन ने गुवाहाटी सहित संवेदनशील इलाकों में निषेधाज्ञा लागू कर दी है। अधिकारियो ने बताया कि कार्यालयों में सामान्य कामकाज, आमजनों और यातायात की सामान्य आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया है।