नई दिल्ली। अमस में विदेशियों के लिए बनाए जा रहे डिटेंशन सेंटर को नया नाम दिया गया है। असम सरकार ने गुरुवार को कहा कि असम में 'विदेशियों' को रखने वाले डिटेंशन सेंटर को अब 'ट्रांजिट कैंप' कहा जाएगा। असम सरकार ने बताया कि विदेशियों के लिए बनाए गए डिटेंशन सेंटर्स को अब ट्रांजिट कैंप के नाम से जाना जाएगा। इस संबंध में असम के गृह एवं राजनीतिक विभाग के प्रमुख सचिव नीरज वर्मा ने 17 अगस्त 2021 को नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है।
असम सरकार ने जारी किया नोटिफिकेशन
असम सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिफिकेशन में कहा गया है कि हिरासत में रखने के उद्देश्य से बनाए गए डिटेंशन सेंटर्स को अब ट्रांजिट कैंप के नाम से जाना जाएगा। यह 17 जून 2009 को जारी नोटिफिकेशन का आंशिक संशोधन है।
गौरतलब है कि असम में घुसपैठ का मसला काफी पुराना है। असम में दशकों से पूर्वी बंगाल (बाद में पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश) से प्रवासी आते रहे हैं। असम में गोलपारा, कोकराझार, तेजपुर, जोरहाट, डिब्रूगढ़ और सिलचर में जिला जेलों के अंदर दोषी विदेशियों और घोषित विदेशियों को रखने के लिए 6 डिटेंशन सेंटर्स बनाए गए हैं। इन्हें राज्य सरकार द्वारा 2009 में अस्थायी रूप से अधिसूचित किया गया था। राज्य सरकार की ओर से एक और डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है, इसमें अवैध रूप से आए विदेशों को हिरासत में रखा जाएगा। नया डिटेंशन सेंटर पूरी तरह से अवैध रूप से आए विदेशियों को हिरासत में लेने के उद्देश्य से गुवाहाटी से लगभग 150 किलोमीटर दूर गोलपारा जिले के मटिया में निर्माणाधीन है।
जुलाई में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने विधानसभा में बताया था कि 6 केंद्रों में 181 बंदी हैं। 181 में से 61 घोषित विदेशी हैं और 120 दोषी विदेशी हैं। हिमंत सरमा ने अपने जवाब में स्पष्ट किया कि वह विदेशी नागरिक जो अवैध रूप से भारत में प्रवेश करता है और अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाता है, जबकि एक घोषित विदेशी वह होता है, जिसे एक बार भारतीय नागरिक माना जाता था, लेकिन फिर विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किया जाता था।
हालांकि, 10 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया था इसके बाद से डिटेंशन सेंटर में रखे गए लोगों की संख्या में कमी आई है। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि घोषित विदेशियों को सरकार कुछ शर्तों के साथ तीन साल की हिरासत पूरी होने के बाद रिहा किया जा सकता है। हालांकि, इसके बाद एक आदेश और आया। अप्रैल 2020 में एक और आदेश ने इन बंदियों को रखने की अवधि को घटाकर दो साल कर दिया, इन दो आदेशों का पालन करते हुए करीब 750 लोगों को रिहा किया गया है।