नई दिल्ली: दिल्ली से 90 किलोमीटर दूर बागपत में पांडवों के महल लाक्षागृह होने के सबूत मिले हैं। उत्तर प्रदेश में बागपत के बरनावा गांव में हो सकता है पांच हज़ार साल पुराना पांडवों का लाक्षागृह। इतिहासकारों के मुताबिक बागपत के बरनावा में ही वो जगह हो सकती है जहां लाक्षागृह मौजूद था। महाभारत में पांडवों को जान से मारने के लिए कौरवों ने जो लाक्षागृह बनवा था उसकी तलाश लगता है पूरी हो गई है। बागपत के बरनावा में लाक्षागृह होने के सबूत दो सुरंगों से मिलते हैं। यहां के खंडर इलाके में ये दोनों सुरंग आमने सामने बनी हैं। किसी ने इन सुरंगों को पूरा पार तो नहीं किया लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं ये सुरंग लाक्षागृह से निकल कर हिंडन नदी तक पहुंचती हैं।
इतिहासकारों के मुताबिक पांडवों ने लाक्षागृह के नीचे खुफिया तरीके इन दो सुरंगों को निर्माण करवाया था। स्थानीय लोगों के मुताबिक ये सुरंग तीन से चार किलोमीटर लंबी हैं। सुरंग में कई तीव्र मोड़ हैं। जैसे जैसे सुरंग में घुसते हैं आगे का रास्ता दिखाई देता है। ये सुरंग इस इलाके से होते हुए हिंडन नदी तक तो पहुंची हैं लेकिन जहां से सुरंग शुरू होती हैं क्या यहीं पर था लाक्षागृह यही पता लगाने के लिए अब ASI ने इस इलाके में खुदाई करने का फैसला किया। दिसंबर में ये तलाश शुरू होगी जो तीन से छह महीनों में पूरी होगी।
लाक्षागृह की तालाश
- यूपी के बागपत के बरनावा गांव में 5000 साल पुराने महल के सबूत
- इतिहासकारों के मुताबिक पांडवों का लाक्षागृह यहां दफ्न हो सकता है
- बरनावा गांव में मौजूद दो सुरंगों से लाक्षागृह होने के पुख्ता सबूत मिले हैं
- महाभारत के समय लाक्षागृह में साजिश के तहत कौरवों ने आग लगाई थी
- पांडवों को जिंदा जलाने के मकसद से लाक्षागृह में आग लगाई गई थी
- लाक्षागृह में आग लगने से पहले ही पांडव सुरंग से बचकर निकल गए थे
- लाक्षागृह की खोज के लिए ASI की दो टीम दिल्ली से बागपत जाएगी
- ASI के 80 अधिकारी-कर्मचारी 6 महीने तक लाक्षागृह की खोज करेंगे
इतिहासकारों की माने तो ये सुरंग पांडवों ने अपनी जान बचाने के लिए बनाई थी। खुफिया तरीके से बनवाई इसी सुरंग के रास्ते पांडव आग में जलने से बच गए थे। ASI की लाक्षागृह की खोज की खबर लगते ही बागपत के इस इलाके में सुरंग को देखने लोग पहुंचने लगे हैं। लोग देखना चाहते हैं क्या है सुरंग की सच्चाई। क्या वाकई में यहां होगा लाक्षागृह। दोनों सुरंग जमीनी सतह से करीब 200 मीटर नीचे बनीं है। कहा जा रहा है कि इन सुरंगों के ऊपरी हिस्से में ही कहीं हो सकता है लाक्षागृह।
मिट्टी के टीले से करीब 200 मीटर नीचे आने पर ये सुरंग दिखाई देती हैं। इस सुरंग से 100 फीट ऊपर बना किले का एक भी हिस्सा दिखाई देता है। जानकारों के मुताबिक गुमब्दनुमा ये इमारत भी लाक्षागृह का ही हिस्सा है। इतिहासकारों के मुताबिक इसी गुम्बद के नीचे मौजूद हो सकता है पांच हज़ार साल पुराना पांडवों का लाक्षागृह।
इतिहासकार काफी समय से बागपत के इस इलाके में लाक्षागृह होने की संभावना जता रहे थे। इतिहासकारों की मांग पर ASI यहां लाक्षागृह के बारे में जानने के लिए काम शुरू करेगी। इसके लिए एएसआई ने खुदाई के लिए 2 अथॉरिटी को लाइसेंस दिया है। ASI की उत्खनन ब्रांच और इंस्टिट्यूट ऑफ ऑर्किओलॉजी संयुक्त रूप से खुदाई करेंगे। पुरात्तवविज्ञान संस्थान के छात्र भी खोज में शामिल होंगे।
ASI को उम्मीद है कि लाक्षागृह के साथ साथ इस इलाके की मिट्टी से कई महत्वपूर्ण चीज़े मिल सकती है। इसकी वजह ये है कि ये जगह चंदायन और सिनौली के करीब है। 2005 में सिनौली में हुई खुदाई के दौरान हड़प्पाकालीन सभ्यता के अवशेष मिले थे साथ ही बड़ी संख्या में कंकाल और मिट्टी के बर्तन भी मिले थे। इसी तरह चंदायन गांव में भी 2014 में हुई खुदाई में तांबे का मुकुट मिला था।