नई दिल्ली। बाबरी ढांचा गिराए जाने को लेकर चले मुकद्दमे पर आज बुधवार को आए विशेष सीबीआई अदालत के फैसले पर AIMIM नेता और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। ओवैसी ने अपने ट्विटर हेंडल पर एक शेयर लिखकर फैसले पर तंज कसा है, ओवैसी ने अपने शेर में लिखा है, "वही क़ातिल वही मुंसिफ़ अदालत उस की वो शाहिद, बहुत से फ़ैसलों में अब तरफ़-दारी भी होती है"
ओवैसी ने इंडिया टीवी को फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए पूछा कि "क्या जादू से मस्जिद को गिराया गया था, क्या जादू से मूर्तियां रखी गई थी, क्या जादू से ताले खोले गए थे जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट ने जो बात कही उसके खिलाफ आज यह फैसला आया है। मैं कहने पर मजबूर हूं कि हिंसा से आपको राजनीति में फायदा हुआ है।"
ओवैसी ने कहा कि जब बाबरी को गिराया गया तो उमा भारती सहित लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी मिठाइयां बांट रहे थे। ऐसे में आज CBI की विशेष अदालत का जो फैसला आया है वह सुप्रीम कोर्ट कही गई बात के खिलाफ है। ओवैसी ने कहा कि यह फैसला हिंदुत्व की विचारधारा को संतुष्ट करने के लिए किया गया है।
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचे विध्वंस मामले में विशेष CBI अदालत में लंबे चले मुकद्दमें के बाद आज फैसला आ गया। आज सीबीआई की विशेष अदालत ने विवादित ढांचे को गिराए जाने को लेकर अपना अहम फैसला सुनाया है। करीब तीन दशक पुराने इस मामले में देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे कई बड़े नेता आरोपी थे। विेशेष CBI अदालत ने मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इसी फैसले पर असदुद्दीन ओवैसी ने तंज कसा है।
सभी आरोपियों को बरी करते हुए कोर्ट ने अपनी राय में कहा है कि जो भी वहां लाखों कार सेवक इकट्ठा हुए थे वे वहां पर सुप्रीम कोर्ट के कार सेवा के आदेश के बाद इकट्ठा हुए थे
कोर्ट ने अपनी राय में कहा है कि ढांचे को गिराए जाने की कोई पूर्व नियोजित साजिश नहीं थी और वहां पर जो नेता इकट्ठा थे उन लोगों ने उस घटना को रोकने के लिए प्रयास किया था, कोर्ट ने अपनी राय में कहा कि सीबीआई ने जो पेपर की कटिंग दाखिल की है उसका कोई आधार नहीं था कि वे कहां से आई थीं।
कोर्ट ने टिप्पणी की है कि विश्व हिंदू परिषद या संघ परिवार का कोई योगदान नहीं था, कुछ आराजक तत्वों ने ढांचा गिराया था, 12 बजे तक स्थिति सामान्य थी, कुछ अराजक तत्वों ने अराजकता की। यानि कोर्ट ने साफ कर दिया है कि जो भी भाजपा नेता वहां इकट्ठा हुए थे उन्होंने ढांचा गिराए जाने से रोकने का प्रयास किया था।
इस केस के फैसले को करीब चार हजार पेज में लिखा गया है। 28 साल चले इस मुकदमें में 351 गवाह पेश किए गए और क़रीब 600 दस्तावेज़ हुए। सीबीआई ने कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें 17 की मृत्यु हो चुकी है जबकि बाकि 32 के नाम मुकदमे में थे। अब वह सभी बरी हो गए हैं। कोर्ट ने माना कि यह घटना अचानक हुई थी, कोई पूर्व सुनियोजित साज़िश नहीं थी। आरोपियों के खिलाफ कोई मजबूत साक्ष्य नहीं था, जिससे वह दोष साबित होते हों।