नई दिल्ली: अरुण जेटली प्रतिभा के धनी थे। आकर्षक व्यक्तित्व, कुशल वक्ता थे। उनकी हर सब्जैक्ट पर पकड़ थी। इसलिए हर कोई उन्हें पसंद करता था। जेटली दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में बड़े-बड़े केस लड़ रहे थे उस समय उनकी उम्र सिर्फ पैंतीस साल थी। उस वक्त अरुण जेटली को दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर एटवोकेट का दर्जा दिया था, लेकिन ये तो अरुण जेटली के लिए सिर्फ एक छोटा सा पड़ाव था। वो मेहनत से पीछे नहीं हटते थे। केस की स्टडी करते थे। हर बारीकी को देखते थे।
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अरुण जेटली की खूबी ये थी कि वो केस की बात करते वक्त परिवार की बात कर लेते थे। खाने के बारे में पूछ लेते थे। क्रिकेट को डिस्कस कर लेते थे। सामने वाले को लगता थे कि वो उसकी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन जब बात खत्म होती थी। वो सवाल पूछना शुरू करते थे। तब समझ आता था कि केस की एक-एक बारीकी उन्हें पता है। एक वक्त में कई सारे काम एक साथ करना उनकी बड़ी खूबी थी, इसीलिए वो देश के सबसे सफल वकील बने। वो चाहते तो चार पांच केस लड़ते और एक करोड़ रूपया रोज कमा सकते थे। लेकिन ज्यादातर केस वो फ्री में लड़ते थे और जिस दिन मौका लगा करोड़ों की कमाई छोड़ने का उन्होंने एक मिनट भी नहीं सोचा। क्योंकि राजनीति उनका पहला पैशन थी।
जब अरुण जेटली लीडर ऑफ ओपोजीशन बने तो उन्होंने वकालत छोड़ दी। जेटली ने इतनी कम उम्न में बड़ी-बड़ी सफलताएं हासिल की। आप अरूण जेटली की काबिलियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि जब वो सिर्फ 37 साल के थे उस वक्त देश के एडीशनल सॉलीसिटर जनरल बन गए थे। ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है। 1989 में वी पी सिंह की सरकार बनी। वी पी सिंह ने अरूण जेटली को सॉलीसिटर जनरल बनाया। बोफोर्स केस अरूण जेटली ने लड़ा और सिर्फ अदालत में नहीं लड़ा, इस केस को जनता की अदालत में ले गए। इसके बाद कांग्रेस का क्या हाल हुआ वो इतिहास है।