नई दिल्ली: क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि आज से लगभग 150 साल पहले कोई भारतीय महिला डॉक्टरी की पढ़ाई करे? और वह भी तब जबकि डॉक्टरी की पढ़ाई भारत में न होती रही हो? आज के समाज में भी लड़कियों के प्रति होने वाले भेदभाव के बारे में में हम सबको पता है, फिर 19वीं शताब्दी में क्या होता रहा होगा इसके बारे में सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। आज हम आपको बता रहे हैं आनंदीबाई जोशी नाम की उस बहादुर महिला के बारे में, जो समाज की रूढ़ियों को तोड़ती हुई सिर्फ 21 साल की उम्र में भारत की पहली महिला डॉक्टर बनी।
पुणे शहर में 31 मार्च 1865 को जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी। उनके बचपन का नाम यमुना था। उनका विवाह 9 साल की छोटी-सी उम्र में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपाल विनायक जोशी से हुआ। विवाह के बाद उनका नाम आनंदीबाई जोशी पड़ा। जब वह सिर्फ 14 साल की थीं, तभी उन्होंने अपनी पहली संतान को जन्म दिया। हालांकि मां बनने की खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रह पाई और उनका बेटा सिर्फ 10 दिन में ही चल बसा। बेटे की मौत के बाद आनंदीबाई अंदर से टूट गईं। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्होंने यह कसम खाई कि एक दिन वहॉ डॉक्टर बनेंगी और ऐसी मौतों को रोकने की कोशिश करेंगी।
आनंदीबाई के रास्ते में कांटे ही कांटे थे
अचानक लिए गए आनंदीबाई के फैसले का उनके परिजनों और आस-पड़ोस के लोगों ने काफी विरोध किया| उनकी काफी आलोचना भी की गई| समाज को यह कतई गवारा नहीं था कि एक शादीशुदा हिंदू औरत विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करे। आनंदीबाई के पति गोपल विनायक एक प्रगतिशील विचारक थे और उन्होंने अपनी पत्नी को भरपूर समर्थन दिया। उन्होंने खुद आनंदीबाई के अंग्रेजी, संस्कृत और मराठी भाषा की शिक्षा दी| उस समय भारत में ऐलोपैथी की पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उन्हें पढ़ाई करने के लिए विदेश जाना पड़ता।
और आनंदीबाई बन गईं देश की पहली महिला डॉक्टर
डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए आनंदीबाई ने 1883 में अमेरिका (पेनसिल्वेनिया) की धरती पर कदम रखा। वह अमेरिका में जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। यही नहीं, वह अमेरिकी धरती पर कदम रखने वाली भी संभवत: पहली भारतीय महिला भी थीं। 1886 में 21 साल की उम्र में आनंदीबाई ने एमडी की परीक्षा पास कर ली और भारत लौट आईं। जब उन्होंने यह डिग्री प्राप्त की, तब महारानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई-पत्र लिखा और भारत में उनका स्वागत एक नायिका के तरह किया गया।
सिर्फ 22 साल की उम्र में ही छोड़कर चली गईं आनंदी
पर यहां भी दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा और भारत वापस आने के कुछ ही दिनों बाद ही वह टीबी की शिकार हो गई। अंतत: लगभग 22 साल की उम्र में ही 26 फरवरी 1887 को भारत की पहली महिला डॉक्टर का निधन हो गया। आनंदीबाई की मौत भले ही कम उम्र में हो गई, लेकिन अपने कठिन परिश्रम और अपनी सफलता से वह लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गईं।