नई दिल्ली। रविवार को अमृतसर मे हुए कश्मीर जैसे आतंकी हमले से एक बार फिर से पंजाब में आतंक का डर पैदा होने की आशंका बढ़ गई है। अमृतसर में निरंकारी भवन में हुए ग्रेनेड हमले से 40 साल पुराने जख्म फिर से ताजा होने लगे हैं। करीब 40 साल पहले यानि 1978 के दौरान पंजाब में इसी तरह से आतंक की शुरुआत हुई थी, उस समय भी सबसे पहले निरंकारियों को निशाना बनाया गया था।
1980 के दशक में पंजाब में निरंकारियों और सिखों के बीच हिंसा बढ़ी थी जिसके बाद राज्य में खालिस्तान समर्थक आतंकवाद तेजी से बढ़ा और उससे अगले 10 सालों को दौरान हुई हिंसा और आतंकवाद ने राज्य में दशहत फैला रखी थी। अब एक बार फिर से राज्य में निरंकारियों को निशाना बनाया गया है जिस वजह से जांच एजेंसियों की नींदें उड़ी हुई हैं।
यही वजह है कि इस मामले की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी कर रही है और जांच एजेंसी ने सोमवार को अमृतसर स्थित घटनास्थल पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी है, रविवार को हुए ग्रेनेड हमले में 3 लोगों की मौत हुई और 20 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।
निरंकारी मिशन सिख धर्म से अलग होकर बना था और इस मिशन की शुरुआत 1929 में पेशावर में की गई थी। 1947 में बंटवारे के बाद दिल्ली को निरंकारी मिशन का मुख्यालय बनाया गया था। 1929 में इसकी नींव बूटा सिंह ने रखी थी और उनके बाद अवतार सिंह, फिर बाबा गुरबचन सिंह, फिर बाबा हरदेव सिंह और उनके बाद हरदेव सिंह की पत्नी सतविंदर हरदेव और अब उनकी पुत्री माता सुदीक्षा निरंकारी मिशन की मुखिया हैं।
निरंकारी मिशन क्योंकि सिख धर्म से अलग होकर बना है ऐसे में दोनो पंथों के बीच वैचारिक मतभेद हैं और यही वजह थी कि 80 के दशक यह वजह सिखों और निरंकारियों के बीच हिंसा फैली, रविवार को अमृतसर में निरंकारी भवन पर हुए हमले के बाद ऐसी आशंका जताई जा रही है कि फिर से अलगाव को बढ़ावा देने की कोशिश हुई है।