इन दिनों देश में एक मुद्दें को लेकर ज़ोरों पर चर्चा चल रही है और वो मुद्दा है रोहिंग्या लोगों का। अखबारों में लेख तो टीवी चैनलों पर इस पर जमकर बहस हो रही है। केंद्र सरकार ने अवैध रूप से भारत में रह रहे प्रवासियों को देश से बाहर करने का फैसला किया है और इसके लिए राज्यों को निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। एक अनुमान के मुताबिक में भारत में 40 हज़ार रोहिंग्या लोग अवैध तरीके से रह रहे हैं। जिसमें सबसे ज़्यादा जम्मू-कश्मीर में बसे हैं। अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। दिल्ली में मौजूद कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों ने केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी। इनका कहना है कि इन्हें अपने देश में खतरा है इसलिए रोहिंग्या लोगों को भारत में रहने की इजाज़त मिले।
कौन हैं रोहिंग्या?
रोहिंग्या लोग म्यांमार के राखीन प्रांत में रहने वाले अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से आते हैं। 1982 में म्यांमार में नया कानून बना जिसमें रोहिंग्या लोगों को नागरिक मानने से इंकार कर दिया गया। वहां की सरकार ने रोहिंग्या लोगों को बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी घोषित कर दिया। म्यांमार सरकार की ओर से रोहिंग्या लोगों को पहचान पत्र दिए गए हैं जिसे उन्हें हर वक्त साथ रखना पड़ता है और हर काम के लिए दिखाना भी पड़ता है। रोहिंग्या लोगों को आम नागरिकों की तरह अधिकार प्राप्त नहीं है। नए कानून की वजह से रोहिंग्या लोगों में सरकार के प्रति काफी गुस्सा है।
रोहिंग्या भारत में क्यों आए?
म्यांमार के राखीन प्रांत में 25 अगस्त को पुलिस की चौकियों पर आतंकी हमले हुए थे। जिसमें 12 पुलिसवालों की मौत हो गई थी। बताया जा रहा है कि इस हमले के पीछे अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी यानी अरसा का हाथ है। अरसा का संबंध इसी इलाके के दूसरे आतंकी संगठन हराका-अल-यकीन से है। ये हमला अबतक का सुरक्षा बलों पर हुआ सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है।
इस हमले के बाद म्यांमार की सेना की ओर से आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में तेज़ी लाई गई है। जिसकी चपेट में बेकसूर रोहिंग्या लोग भी आ रहे हैं और जान बचाने के लिए ये लोग बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। यूएनएचसीआर के मुताबिक पिछले दो हफ्ते में करीब 2 लाख 70 हज़ार रोहिंग्या लोग बांग्लादेश पहुंचे हैं। बांग्लादेश होते हुए ही ये लोग भारत में दाखिल होते हैं।
भारत की सुरक्षा के लिए रोहिंग्या क्यों खतरा है?
ये बात सही है कि रोहिंग्या लोग अपने ही देश के पीड़ित हैं और इसलिए वो दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं। लेकिन वहां जो हिंसा छिड़ी है उसका इतिहास जानना भी उतना ही ज़रूरी है। राखीन प्रांत का हिंसा से लंबा रिश्ता रहा है। 1947 से 1961 तक इस इलाके में मुजाहिदीन म्यांमार सरकार से लड़ते रहे है। वो इस इलाकों को बर्मा से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान से मिलाना चाहते थे।
दरअसल म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यक है और उनकी तादाद सबसे ज़्यादा राखीन में है। जब भारत का बंटवारा हो रहा था और पूर्वी पाकिस्तान (यानी आज का बांग्लादेश) बन रहा था तब राखीन के कई मुस्लिम नेताओं ने पूर्वी पाकिस्तान से जुड़ने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। लेकिन उस समय बात बनी नहीं। इसके बाद रोहिंग्या समुदाय के कुछ लोगों ने हिंसा का रास्ता अपना लिया और हथियार उठा लिए। हालांकि इन्हें जल्द ही सरकार के सामने हथियार डालने पड़े। 1970 के आते-आते रोहिंग्या इस्लामिस्ट मूवमेंट की शुरूआत हो गई। जिसके खिलाफ 1978 में म्यांमार सरकार एक बड़ा ऑपरेशन चलाया जिसे किंग ड्रैगन के नाम से जाना जाता है। इस ऑपरेशन के दौरान बड़ी तादाद में आतंकियों को ढेर किया गया। 1990 में एक और संगठन खड़ा हुआ जिसका नाम रोहिंग्या सॉलिडैरीटि ऑग्रेनाइज़ेशन था। ये संगठन पहले गुटों से ज़्यादा ताकतवर और बेहतर हथियारों से लैस था। इस गुट ने म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर तैनात सुरक्षाबलों को निशाना बनाया और इन पर कई हमले भी किए जिसमें सैकड़ों की जान गई।
अक्टूबर 2016 को रोहिंग्याओं से जुड़ा एक नया आतंकी गुट सामने आया जिसका नाम था हराका-अल-यकीन। इस गुट ने अक्टूबर से नवंबर के बीच म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों पर कई घातक हमले किए जिसमें करीब 150 लोगों की जान चली गई। म्यांमार सरकार का मानना है कि रोहिग्याओं से जुड़े सभी संगठन आतंकी गुट है और इनके नेताओं को विदेशों में ट्रेनिंग दी जाती है। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप यानी आईसीजी के मुताबिक आरसा के आतंकियों को विदेशी धरती पर ट्रेनिंग दी गई है और इनके आका साउदी अरब में बैठे रोहिंग्या लोग हैं। आईसीजी का कहना है कि आरसा का नेता अता उल्ला पाकिस्तान में पैदा हुआ और साउदी अरब में पला बड़ा है। इनदिनों आरसा गुट सहसे ज़्यादा सक्रिय है।
निष्कर्ष-
भारत एक ऐसा देश है जहां तिब्बतियों, श्रीलंका के तमिल समेत कई देशों के लोगों ने शरण ले रखी है। करीब 2 करोड़ बांग्लादेशी लोग भारत में अवैध तरीके से रह रहे हैं। ऐसे से ही कई बांग्लादेशी और रोहिंग्या लोगों ने अवैध तरीके से भारतीय दस्तावेज़ हासिल कर लिए हैं जो सिर्फ इस देश के नागरिकों के लिए मान्य है। इनमें वोटर कार्ड और आधार कार्ड भी शामिल है। इन बाहरी लोगों का इस तरह से सरकारी दस्तावेज़ हासिल कर लेना देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा भी है और गैर कानूनी भी है। ख़तरा ये भी है कि इन शरणार्थियों की आड़ में अगर उनके मुल्क के आतंकी भारत में दाखिल हो जाए तो क्या होगा? और ऐसा होना मुमकिन है।
आईसीजी की रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया है कि म्यांमार के आतंकी गुटों का संबंध पाकिस्तान और सऊदी अरब से है। भारत पहले से ही लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से लड़ रहा है, ऐसे में नए संगठनों का यहां घुसपैठ कर जाना देश के लिए तबाही का सबब होगा। केंद्र सरकार ने अवैध तरीके से रह रहे प्रवासियों को वापस भेजने का फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया है। इसके लिए बकायदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ समेत देश के बड़े सुरक्षा अधिकारियों से सलाह मशविरा किया गया है।
(ब्लॉग लेखक अमित पालित देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)