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BLOG: मोदी का इज़रायल दौरा सिर्फ एक दौरा नहीं, ऐतिहासिक फ़ैसला है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 से 6 जुलाई तक इज़रायल के दौरे पर रहेंगे। ये दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक रहने वाला है। पहली बार भारत का कोई प्रधानमंत्री इज़रायल के दौरे पर जा रहा है। मगर ये दौरा सिर्फ़ एक दौरा नहीं है। ये एक ऐसा फ़ैसला जो ये दर्शाता है कि

IndiaTV Hindi Desk
Updated on: July 04, 2017 12:29 IST
pm modi- India TV Hindi
pm modi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 से 6 जुलाई तक इज़रायल के दौरे पर रहेंगे। ये दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक रहने वाला है। पहली बार भारत का कोई प्रधानमंत्री इज़रायल के दौरे पर जा रहा है। मगर ये दौरा सिर्फ़ एक दौरा नहीं है। ये एक ऐसा फ़ैसला जो ये दर्शाता है कि भारत अब एक वैश्विक ताक़त है जो अपने हितों के लिए कोई भी कदम उठाने की क्षमता रखता है।

1950 में भारत ने इज़रायल को एक देश के रूप में मान्यता दी लेकिन 1990 तक दोनों देशों के बीच औपचारिक संबंध स्थापित नहीं हुए। 1992 में दोनों मुल्कों ने औपचारिक रिश्ता कायम किया। आख़िर वो क्या वजह थी कि भारत को इज़रायल से औपचारिक संबंध बनाने में 42 साल का वक़्त लग गया?

दरअसल इसकी वजह थी वो तमाम इस्लामिक देश जो इज़रायल से नफ़रत करते हैं और उसे अपना दुश्मन भी मानते हैं। पहले कि जो सरकारें भारत में रहीं वो किसी भी तरह से खाड़ी के देशों को नाराज़ नहीं करना चाहती थी। क्योंकि इन्हीं देशों से भारत को तेल की आपूर्ति होती है। इसके अलावा उस दौर के सियासतदान देश के मुस्लिम समुदाय को भी खुश रखना चाहते थे (वोट के लिए)।

1991 में सोवियत यूनियन का टूटना और इसके साथ ही शीत युद्ध का ख़त्म होना। ये भारत समेत पूरे विश्व के लिए बहुत बड़ा बदलाव था। सोवियत यूनियन के टूटने से रूस कमज़ोर हुआ, जिसका असर भारत पर पड़ना लाज़मी था।

परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि भारत को नए दोस्तों की ज़रूरत आन पड़ी। भारत की सुरक्षा को पाकिस्तान के इशारे पर आतंकी चुनौती दे रहे थे। आतंकवाद से निपटने के लिए भारत को इज़रायल से बेहतर दोस्त नहीं मिल सकता था क्योंकि खुद इज़रायल आतंकवाद से लड़ रहा था। इज़रायल दुनिया का एकमात्र यहुदी देश है जो हर तरफ से मुस्लिम देशों से घिरा है। फिलिस्तीन तो उसके बीचो-बीच मौजूद है। लेबनान और फिलिस्तीन में मौजूद हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे आतंकी संगठन लगातार इज़रायल को निशाना बनाते हैं। आतंकियों और दुश्मन मुल्कों से निपटने के लिए इज़रायल ने एक ऐसा सुरक्षा तंत्र या कवच बना रखा जो उसके नागरिकों को खतरों से बचाता है। भारत को इसी सुरक्षा कवच की ज़रूरत है जो इज़रायल भारत के साथ साझा करने को तैयार है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान भारत और इज़रायल के बीच रिश्ता परवान चढ़ा। 1999 के कारगिल युद्ध के समय इज़रायल ने भारत को हथियार और बम देकर बड़ी मदद की। इसके बाद से दोनों देशों ने सिर्फ रक्षा के क्षेत्र में नहीं बल्कि कृषि और तकनीकि के क्षेत्र में भी साझेदारी बढ़ाई।

2003 में एरियल शेरॉन पहले इज़राइली प्रधानमंत्री बने जिन्होंने भारत का दौरा किया। जिसके बाद भारत ने इज़रायल से कई अहम मिसाइल और हथियार खरीदे। यही नहीं दोनों देशों की खूफिया एजेंसियां भी आपस में सहयोग करती रहती है। मनमोहन सिंह सरकार ने भी इज़रायल के साथ रिश्तों को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन फिर भी एक बड़ी कमी रह ही गई, कि भारत के किसी प्रधानमंत्री ने इज़रायल दौरा नहीं किया।

2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की कमान संभाली, तब इस बात की उम्मीद जगी कि वो इज़रायल के साथ संबंधों को और बेहतर बनाएंगे साथ ही इज़रायल का दौरा भी करेंगे। इसकी झलक भी देखने को मिली। पीएम मोदी ने 2014 के अमेरिकी दौरे के समय न्यूयॉर्क में इज़रायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से मुलाकात की। 2014 में गृह मंत्री राजनाथ सिंह, 2016 में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और कृषि मंत्री राधामोहन सिंह इज़रायल गए। पिछले तीन साल में पीएम मोदी ने सऊदी अरब, यूएई, कतर और ईरान जैसे ताकतवार मुस्लिम देशों का दौरा किया (ये सभी देश इज़रायल के विरोधी है) लेकिन इज़रायल नहीं गए, जिससे जानकारों के मन में थोड़ी बहुत शंका ज़रूर पैदा हुई। हालांकि अब वो शंका दूर हो गई है।

जो पीएम मोदी की कार्यशैली को समझते हैं उनका मानना है कि पीएम मोदी हर कदम आने वाले 100 कदम को ध्यान में रखकर उठाते हैं। मतलब ये है कि पीएम मोदी ने पहले इस्लामिक देशों को भरोसे में लिया फिर इज़रायल का दौरा तय किया। भारत खाड़ी के देशों को ये समझाने में कामयाब रहा कि उसका इज़रायल के साथ संबंधों का रखना क्यों ज़रूरी है। और इसका असर अरब देशों के साथ रिश्तों पर नहीं पड़ेगा। भारत के लिए इज़रायल और खाड़ी के देश दोनों ही महत्वपूर्ण है। दो विरोधियों के साथ समान रूप से रिश्तों का तालमेल बिठाना ये भारत की ताकत, अहमियत और मोदी सरकार की स्मार्ट डिप्लोमेसी की मिसाल पेश करता है।

(ब्‍लॉग लेखक अमित पालित देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्‍यूज एंकर हैं) 

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