नई दिल्ली: असम के गुवाहाटी से लगभग 9 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर देवी का एक अनोखा कामाख्या मंदिर स्थित है। इस मंदिर को देवी के सभी शक्तिपीठों में से बहुत खास माना जाता है, क्योंकि धर्म ग्रथों के अनुसार, यहां पर देवी सती योनिभाग गिरा था। यहां पर देवी की मूर्ति नहीं बल्कि योनिभाग की ही पूजा होती है, जिसे हमेशा फूलों से ढ़ककर रखा जाता है। योनिभाग गिरने के कारण यहां पर मान्यता है कि यहां हर साल देवी रजस्वला होती है। जब देवी रजस्वला होती है, उसे अम्बुवाची पर्व कहा जाता है। अम्बुवाची पर्व को अम्बुबाची पर्व भी कहा जाता है। हर साल यह पर्व जून में तिथी के अनुसार मनाया जाता है और इस बार ये पर्व 22 जून से 25 जून के दौरान मनाया जाएगा।
क्यों मनाया जाता है अंबुबाची
माना जाता है कि इऩ दिनों में साल में एक बार कामाख्या देवी रजस्वला हो जाती है और यह उनके श्रद्धालुओं को दिखाई भी देता है। देवी को इन दिनों योनि के रूप में पूजा जाता है। इन दिनों ब्रह्मपुत्र के पानी से लेकर कई जगह तक मां की शक्ति का हल्के लाल रंग में दर्शन भी होने की बात कही जाती है। अंबुबाची को प्रकृति के उर्वरा शक्ति का प्रतीक और उसके प्रकटीकरण के तौर पर भी देखा जाता है।
नहीं होती घरों में भी पूजा
इन चार दिनों में न तो कोई शुभ काम होता है न ही कोई शुरुआत की जाती है और तो और कामाख्या देवी मंदिर के पट बंद रहते है। पूरे असम में कहीं भी घरों में भी पूजा नहीं होती। माना जाता है कि यह प्रकृति की उर्वरता की उपासना के दिन है। इसके साथ ही यहां पर बड़ा मेला लगता है। यह तांत्रिकों के सबसे बड़े दिन होते हैं। बहुत से तंत्र साधक पूरे देश से इन दिनों में इस पर्व में सम्मिलित होते है। तंत्र साधकों और शक्ति के गुप्त रुप के उपासकों के लिए यह सालाना कुंभ की तरह होता है। कुछ बड़े तंत्र साधक और तांत्रिक इन्हीं दिनों में सामान्य जनता को दर्शन देते है।
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