नई दिल्ली: डोकलाम में चीन से तनातनी जारी है और चीन हर रोज युद्ध की धमकी दे रहा है। इसी तनातनी के बीच नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने एक चौंकाने वाले तथ्य को उजागर किया है। संसद में शुक्रवार को पेश कैग की रिपोर्ट में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण देश भर के छह स्थानों पर मिसाइल रक्षा प्रणाली लगाने में लेट-लतीफी की बात सामने आई है। इसमें चीन से लगती सीमा भी शामिल है। वर्ष 2013-15 के बीच वायुसेना के लिए मिसाइलें तैनात की जानी थीं, लेकिन चार साल बाद भी यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है। ये भी पढ़ें: दलालों के चक्कर में न पड़ें 60 रुपए में बन जाता है ड्राइविंग लाइसेंस
रिपोर्ट में बताया गया कि सतह से आसमान में मार करने वाली इस मिसाइल के 30 फ़ीसदी परीक्षण जो अप्रैल से नवंबर 2014 के बीच हुए, वे नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह मिसाइल अपने लक्ष्य से पीछे ही रह गई और इसकी गुणवत्ता भी कम है इसलिए ये इतनी भरोसेमंद नहीं है कि युद्ध जैसे हालातों में भेजी जाए। इश मिसाइल को भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड ने बनाया है और अब तक कंपनी को 95 फीसदी यानी करीब 3600 करोड़ रुपय का भुगतान भी कर दिया गया है।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, 'खतरों को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में वायुसेना के लिए 'एस' सेक्टर में मिसाइल प्रणाली तैनात करने का फैसला लिया था। इसे जून, 2013 से दिसंबर, 2015 के बीच चरणबद्ध तरीके से तैनात करने की योजना थी। लेकिन, चार साल बाद भी यह क्षमता हासिल नहीं की जा सकी है। देरी की मुख्य वजह मिसाइल प्रणाली की तैनाती के लिए आधारभूत संरचना की तैयारी में असामान्य विलंब है।
रिपोर्ट में तैनाती स्थल का उल्लेख कोड में किया गया है। सूत्रों की मानें तो 'एस' सेक्टर वायुसेना का पूर्वी कमान है। इस क्षेत्र में चीन के साथ भारत की विस्तृत सीमा लगती है। तैनात किए जाने वाले मिसाइल का नाम भी नहीं बताया गया है, लेकिन माना जा रहा है छह स्थानों पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित आकाश मिसाइल को तैनात किया जाना है।
कैग की रिपोर्ट में सतह से हवा में मार करने में सक्षम आकाश मिसाइल में गंभीर खामी की बात सामने आई है। परीक्षण के दौरान इसके विफल होने की दर 30 फीसद तक बताई गई है। अप्रैल से नवंबर, 2014 के बीच 20 मिसाइलों का परीक्षण किया गया, जिनमें छह विफल रहीं।
आकाश और उसका नया संस्करण आकाश एमके-2 मध्यम दूरी की जमीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल सिस्टम हैं जो दुश्मन के विमानों और मिसाइलों को 18-20 किलोमीटर की दूरी पर मार गिराने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। भारतीय वायुसेना द्वारा इसका बड़े पैमाने पर परीक्षण किया गया और 2008 में पहली बार इसे सेना में शामिल किया गया। आकाश को स्वदेशी मिसाइल सिस्टम में मील का पत्थर माना गया था और 2010 में इसके अतिरिक्त 6 स्क्वाड्रन का ऑर्डर दिया गया था।
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