नई दिल्ली: किसानों ने आखिरकार अपना आंदोलन ख़त्म करने का ऐलान कर दिया है। दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर जमे हजारों किसानों को कल आधी रात किसानघाट जाने की इजाजत दे दी गई। इसके बाद किसानों का हुजूम दिल्ली के किसानघाट पहुंचा जहां से वो अपने-अपने घरों को लौट जाएंगे। हालांकि किसान नेता अब भी सरकार से नाराज़ हैं। मंगलवार को किसानों को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर रोकने के लिए यूपी और दिल्ली, दोनों राज्यों की पुलिस ने पूरा जोर लगा रखा था, मगर आखिरकार जीत किसानों की हुई। मंगलवार देर रात करीब 12:30 बजे पुलिस ने बैरियर खोल दिए और किसानों को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत दे दी।
देर रात अचानक किसानों को दिल्ली में एंट्री की खबर मिलते ही सड़कों पर सो रहे किसान जाग उठे और ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर दिल्ली की ओर कूच कर गए। देर रात यूपी गेट और लिंक रोड पर करीब 3000 किसान मौजूद थे, जो सड़कों पर सो रहे थे। दिल्ली में एंट्री की खबर मिलते ही किसानों में खुशी की लहर दौड़ गई।
फैसला हुआ कि रात में ही किसान राजघाट पहुंचेंगे और फिर अपने-अपने घरों को वापस लौट जाएंगे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। इसी के साथ किसानों का आंदोलन ख़त्म हो गया। हालांकि किसान नेता अब भी सरकार से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं। आंदोलन उग्र होते ही सरकार एक्शन में आई और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किसान नेताओं के डेलीगेशन को घर मिलने बुलाया। बैठक के बाद किसानों की 7 मांगे मान ली गई।
किसानों को मनाने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और यूपी के मंत्री सुरेश राणा दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर गाजीपुर भी पहुंचे लेकिन बात नहीं बनी। इसके बाद खुले आसमान के नीचे किसान दिल्ली बॉर्डर पर ही डेरा जमाकर बैठ गए। तैयारी आज सुबह फिर दिल्ली कूच करने की थी लेकिन ऐसी नौबत ही नहीं आई।
बता दें कि कल सुबह करीब सवा 11 बजे किसानों का यह आंदोलन तब हिंसक हुआ जब उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़कर दिल्ली में घुसने की कोशिश की। पुलिस के मुताबिक किसानों ने पत्थरबाजी की, जिसके जवाब में पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। पानी की बौछारें छोड़ीं। लाठियां चलाईं। रबड़ की गोलियां भी दागीं। ट्रैक्टरों के तार काट दिए। पहियों की हवा निकाल दी। करीब आधे घंटे तक अफरा-तफरी जैसे हालात में 100 से ज्यादा किसानों को चोंटें आईं, कुछ गंभीर भी हैं। वहीं, दिल्ली पुलिस के एक ACP समेत 7 पुलिसकर्मी घायल हुए।
अब फिलहाल तो किसानों का आंदोलन ख़त्म हो गया है लेकिन सरकार भी जानती है कि 2019 सामने है और उससे पहले अन्नदाता की नाराज़गी उसे महंगी पड़ सकती है। वो भी तब जब कांग्रेस विरोध की हर चिंगारी को हवा देने में जुटी हो।