नई दिल्ली: मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के सख्त नियमों में बदलाव पर विचार कर रही है। इस नियम को और भी मानवीय बनाए जाने के लिए इस पर विचार किया जा रहा है। अफस्पा के जरिए सेना को जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं जिसपर अक्सर विवाद होता रहता है और यहां के स्थानीय लोग इसके खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं। लोग सेना पर अफस्पा के दुरुपयोग का आरोप लगाते रहते हैं और इसे हटाए जाने की मांग करते रहते हैं, ऐसे में सरकार इसपर एक बार फिर से विचार कर रही है ताकि इसे और भी मानवीय बनाया जा सके जिससे की लोगों का सेना के प्रति रुख बदले।
सूत्रों का कहना है कि रक्षा और गृह मंत्रालय के बीच अफस्पा को हटाने या इसके प्रावधानों को कमजोर बनाने के लिए कई दौर की उच्च स्तरीय बातचीत हुई है। ये बातचीत एक्स्ट्रा जूडिशल किलिंग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और पिछले सालों में इसे लेकर एक्सपर्ट कमिटी की तरफ से आए सुझावों के आलोक में हुईं हैं। विशेषकर ये चर्चाएं अफस्पा के सेक्शन 4 और 7 पर केंद्रित रहीं हैं। इसके तहत आतंकविरोधी अभियानों में सुरक्षाबलों को असीमित अधिकार और कानूनी सुरक्षा मिलती रही है।
इसे हटाने या उसके प्रावधानों को कमजोर करने की पहले भी कई कोशिशें हुईं हैं लेकिन परिणाम शुन्य रहा है। रक्षा मंत्रालय और सेना की तरफ से जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों से विवादित अफस्पा को हटाने या इसके कुछ प्रावधानों को शिथिल करने के हर प्रयास का विरोध हुआ है।
बता दें कि वर्ष 1958 में पहली बार अफस्पा अस्तित्व में आया था जब नागा उग्रवाद पर नियंत्रण करने के लिए सेना के साथ राज्य और केंद्रीय बल को गोली मारने, घरों की तलाशी लेने के साथ ही उस संपत्ति को अवैध घोषित करने का आदेश दिया गया था जिसका प्रयोग उग्रवादी करते आए थे। सुरक्षा बलों को तलाशी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होती थी। यह कानून असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड और इंफाल म्यूनिसिपल इलाके को छोड़कर पूरे मणिपुर में लागू है। वहीं अरुणाचल प्रदेश के तिराप, छांगलांग और लांगडिंग जिले और असम से लगी सीमा पर यह कानून लागू है, साथ ही मेघालय में भी सिर्फ असम से लगती सीमा पर यह कानून लागू है।
सुरक्षाबलों का तर्क है कि संसद की तरफ से लागू किया गया अफस्पा जवानों को जरूरी अधिकार देता है। उनके तर्क के मुताबिक इस कानून की मदद से काफी खतरनाक स्थितियों में आतंकी या दूसरे खतरों से जूझ रहे जवानों को कार्रवाई में सहयोग मिलने के साथ-साथ सुरक्षा भी मिलती है।