नई दिल्ली/जबलपुर: मध्यप्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट की युगलपीठ द्वारा मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ राज्य के मूल निवासी को ही दाखिला दिए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस शरद अरविंद बोबडे और एल़ नागेश्वर राव की युगलपीठ ने मंगलवार को सही ठहराया। राजनीतिक दलों सहित सामाजिक कार्यकर्ताओं ने देश की सबसे ऊंची अदालत के इस फैसले का स्वागत करते हुए सरकार पर सवाल उठाए हैं।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता आदित्य सांघी ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए प्रतियोगिता परीक्षा 'नीट' हुई थी। इसमें कई गड़बड़ियां सामने आने पर मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर निवासी विनायक परिहार और जबलपुर निवासी तारिषी वर्मा की तरफ से याचिका दायर की गई थी। याचिका पर हाईकोर्ट की जस्टिस आर.के. झा व जस्टिस नंदिता दुबे की युगलपीठ ने गुरुवार आदेश दिया था कि शासकीय स्वशासी चिकित्सा एव दंत चिकित्सा महाविद्यालयों के पाठयक्रमों में नियम-2017 के अनुसार प्रदेश के मूल निवासी छात्र को ही प्रवेश दिया जाए।
सांघी के मुताबिक, राज्य सरकार इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई और काउंसिलिंग पूरी हो जाने का हवाला दिया। साथ ही अनुरोध किया कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट की युगलपीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए अपील निरस्त कर दी।सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सामाजिक संगठन 'विचार मध्यप्रदेश' ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा है कि इससे राज्य के छात्र ठगे जाने से बच गए।
विचार मध्यप्रदेश की कोर कमेटी के सदस्य विनायक परिहार, अक्षय हुंका, विजय बाते आदि ने एक बैठक कर सरकार से पूछा है कि राज्य में दो मूल निवासी प्रमाणपत्र वालों के आवेदन निरस्त क्यों नहीं किए गए, जब हाईकोर्ट ने प्रदेश के बच्चों के पक्ष में निर्णय दिया, तो बजाय उनका साथ देने के सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील क्यों की?उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कुछ लोगों को फायदा पहुचाने के लिए प्रदेश के प्रतिभाशाली बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं।