दिल्ली की हवा ज़हरीली हो गई है…दिल्ली गैस चेम्बर बन गया है… सांस लेने का मतलब 50 सिगरेट रोज़ पीना जैसी बातें आज़ से एक हफ़्ताभर पहले चर्चा का विषय बनी हुई थी। अख़बार, टीवी से लेकर लोगों की बीच ये बात आम हो गई थी। लोग चिन्तित नज़र आ रहे थें। कुछ लोग तो दिल्ली छोड़ दूसरे शहर में कुछ दिनों के लिए अप्रवासी बन गए तो कुछ लोग सुरक्षा के लिए हवा शुद्धिकरण यंत्र और मास्क का इस्तेमाल करने लगे, पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो कुछ ना कर पाए। मतलब दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र की स्थिती पिछले कुछ सालों की तरह फिर एक बार देश ही नही विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गई थी।
इस दौर में वो सब कुछ हुआ, जो पिछले कई सालों से होता आ रहा है। हवा के ज़हरीली हो जाने पर अचानक से सारी संस्थाए बोलने लगी, कोई आदेश देने लगा तो कोई आलोचना करने लगा। नया ये हुआ कि दिल्ली सरकार ने पड़ोसी राज्य के किसानों को सबसे ज़्यादा गुनहगार बता दिया,उसमें भी ज़्यादा गुनहगार पंजाब के किसानों को। दिल्ली के सीएम पंजाब के सीएम से मिलने का वक़्त मांगते रहें लेकिन अब तक अरविन्द केजरीवाल को सफलता नहीं मिली है।
इस मौके पर मीडिया ने भी पर्यावरण के प्रति अपनी संवेदनहीनता नही दिखाई। सूचना के नाम पर दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों से ‘राष्ट्रीय समस्या’ के रुप में देशवासियों के बीच पहुंचाती रही। अफ़सोस की बात कि मीडिया की 'हिन्दू-मुसलमान' जैसी राष्ट्रीय समस्या के सामने ‘स्मॉग’ नामक इस पर्यावरणीय समस्या ने डिबेट शो में जगह नहीं बनाई।
हर बार की तरह इस बार भी इस समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद कर देना और ऑड-इवन जैसे क़दम उठाये। दिल्ली की हवा अब थोड़ी बेहतर हो गई है लेकिन एनजीटी और सरकार के बीच कई मुद्दों पर सहमति ना होने के कारण अब तक ऑड-इवन लागू नहीं हो पाया है। अब शायद लागू भी ना हो पाए क्योंकि मौसम ने अपना मिज़ाज बदल लिया है। मौसम विभाग के अनुसार तापमान और हवा की गति में गिरावट एवं नमी में इजाफ़े की वज़ह से ऐसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। पिछले कुछ सालों से इसी समय में जब ऐसी समस्या उत्पन्न होती है तो समस्या के सभी कारणों पर बात होने लगती है। उसके बाद जब मौसम का मिज़ाज बदल बदल जाता है तो सरकार के साथ जनता भी ऐसे सामुहिक चुप्पी साध लेती है जैसे स्मॉग नामक कोई समस्या थी ही नहीं।
दिल्ली की धुंध का कारण सरकार से लेकर जनता तक को पता है लेकिन बात यहीं अटक जाती है कि निवारक क़दम किसको उठाना चाहिए? सिर्फ़ सरकार को, सिर्फ़ जनता को या फ़िर दोनों को। आईआईटी कानपुर के अनुसार मलबा-धूल पीएम 2.5 और पीएम -10 प्रदुषण के बड़े वाहक है। दिल्ली में हर दिन 4000 टन धूल-मलबा पैदा होता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कुल 89 लाख से अधिक पंजीकृत वाहन है। जबकि रात दस बजे के बाद एक लाख से अधिक ट्रक राजधानी में प्रवेश करते हैं। गति कम होने से ज़्यादा धुंआ निकलने से प्रदुषण फ़ैल जाता है।
ताज़ा जानकारी के मुताबिक केजरीवाल सरकार ने 'सूचना का अधिकार' के तहत संजीव जैन के सवालों का जवाब देते हुए बताया कि सरकार को ग्रीन टैक्स के नाम पर साल 2015 में 50 करोड़, साल 2016 में 387 करोड़ और जनवरी 2017 से 30 सितंबर 2017 तक 787 करोड़ रूपये प्राप्त हुए हैं। आरटीआई के मुताबिक इन तीन सालों में प्राप्त धनराशि में से सिर्फ़ 2016 में प्रदूषण को रोकने के लिए मात्र 93 लाख ही खर्च किए। मतलब साफ है कि केजरीवाल सरकार ने साल 2015 और 2017 में प्रदुषण को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। अब दिल्ली की इस बदहाली के लिए केजरीवाल सरकार को दोषी क्यों ना माना जाए? आखिर वो किस आधार पर किसानों को इस समस्या के लिए खलनायक बता रहें हैं?
दिल्ली की हवा जब ज़हरीली हो गई थी, तो दिल्ली के नेटिजन ट्वीटर पर स्वच्छ हवा की बात कर रहें थें। उस वक़्त ट्विटर पर #iwantcleanair ट्रेन्ड कर रहा था। मैंने भी लिखा था "#iwantcleanair लेकिन कैसे? सिर्फ़ सरकार को कोसने से? या फ़िर शुद्ध हवा पाने के लिए ख़ुद भी कुछ करेंगे। "इस ट्रेन्ड के बहुत सारे ट्वीट को मैंने पढ़ा। पढ़ के बड़ा ही अफ़सोस हुआ कि आख़िर आधुनिकता के दौर में दिल्ली वाले ख़ुद को भी इस समस्या के लिए ज़िम्मेदार क्यों नहीं मान रहें हैं? दिल्ली में 89 लाख़ से अधिक पंजीकृत वाहन किसके हैं? हर दिन 4000 धूल-मलबा कैसे पैदा होता है? खैर,इस समस्या का समाधान कितना हो पाएगा ये आने वाला वक़्त बताएगा लेकिन लैंसेट के मुताबिक भारत में हर साल प्रदूषण के कारण 25 लाख लोगों की मौत होती है।
(इस ब्लॉग के लेखक आदित्य शुभम युवा पत्रकार हैं)