नई दिल्ली: बिहार में दिमागी बुखार से मरने वाले बच्चों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की असल लड़ाई विपक्ष से नहीं जनता से है। अब तक जो तस्वीर सामने आई है उसे देखकर लगता है नीतीश कुमार का जनता से कोई लेना देना है ही नहीं। मौत का सिलसिला जारी है और राज्य सरकार में बराबर की भागीदार बीजेपी बोल रही है कि बिहार के सारे पार्टी सांसद हर जिले में सदर अस्पताल के लिए 25 लाख रुपये देंगे।
146 बच्चों की मौत ने बिहार में सड़ चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था की परतों को उधेड़ कर रख दिया है। अब दिन भर चार बार मेडिकल बुलेटिन जारी किया जा रहा है। जिन कैमरों के जरिए अस्पताल का सच बाहर आया करता था उन कैमरों के लिए चारों तरफ अब पहरा बैठा दिया गया है। मुजफ्फरपुर में पत्रकारों से अस्पताल वालों को परहेज है और पटना में सरकार को।
वहीं शुक्रवार को यह मुद्दा राज्यसभा में उठा और सदस्यों ने केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप करने और पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की। उच्च सदन में शून्यकाल में सदस्यों ने यह मुद्दा उठाया। सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस घटना पर शोक जताते हुए कहा कि सदन उन बच्चों को श्रद्धांजलि देता है।
इसके बाद सदस्यों ने अपने स्थानों पर कुछ क्षणों का मौन रखकर दिवंगत बच्चों को श्रद्धांजलि दी। नायडू ने कहा कि बिहार में बच्चों की मौत के मुद्दे पर चर्चा के लिए दिए गए कार्य स्थगन प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया और यह विषय शून्यकाल में उठाने की अनुमति दी। भाकपा के विनय विश्वम ने कहा कि सरकार इसे दुर्घटना बता रही है लेकिन इसे गरीब बच्चों की ‘‘हत्या’’ कहा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आधिकारिक तौर पर 130 बच्चों की मौत हो चुकी है और अस्पतालों में न तो कोई दवाई है और न ही इस रोग के इलाज के लिए जरूरी सुविधाएं हैं। उन्होंने कहा कि बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और हर साल देश में करीब 24 लाख बच्चों की कुपोषण के कारण मौत हो जाती है।