बात 10 सितम्बर सन् 1965 की है जब अमृतसर से पश्चिम की ओर अब्दुल हमीद कसूर क्षेत्र में तैनात थे और यही से पाकिस्तानी कमाण्डर ने आगे बढकर अमृतसर को घेरने की योजना बनाई हुई थी। अपनी योजना के अनुसार पैटन टैंकों के फौलादी लाव लश्कर के साथ फौलादी गोले बरसाते हुए दुश्मन फौज भारतीय सेना पर टूट पडी।
बिना समय बर्बाद किए तोप युक्त अपनी जीप को एक टीले के पीछे रोक कर वो पाकिस्तानी पैटन टैंकों पर भीषण गोलाबारी करने लगे और देखते ही देखते पाकिस्तान के तीन टैंकों को ध्वस्त कर दिया। अजय समझे जाने वाले पाकिस्तान के टैंकों पर अब्दुल के गोले इतने सधे हुए पड़ रहे थे कि गोला पड़ते ही उन में आग लग जाती थी।
इस जंग में भारत की जीत तो हुई, लेकिन अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हो गए। कंपनी हवलदार अब्दुल हमीद उस समय सिर्फ 32 साल के थे जब वे शहीद हुए।
उनको मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया। इसके अलावा अब्दुल हमीद को समर सेवा मेडल, रक्षा मेडल, सेना सेवा मेडल से भी नवाजा गया।