नई दिल्ली: आरुषि मर्डर केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई की धज्जियां उड़ाकर रख दी है। हाईकोर्ट की इस सख्ती से पहले सीबीआई लोअर कोर्ट के फैसले को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही थी क्योंकि लोअर कोर्ट उसकी दलीलों को मान चुका था। लेकिन अब हाईकोर्ट की फटकार के बाद जांच करने वाले सीबीआई के डायरेक्टर और अफसर आमने-सामने आ गए हैं। अफसरों ने खुले आम अपने उन तत्कालीन आला अधिकारियों पर सवाल उठा दिये हैं जिन्होंने पहली टीम को हटाया था। हाईकोर्ट की फटकार के बाद सीबीआई एक बार फिर कटघरे में है। ये भी पढ़ें: आखिर टूट गई हनीप्रीत, माना बाबा के साथ 'रिश्ता', कबूल किए गुनाह?
मई 2008 में आरुषि और हेमराज का डबल मर्डर केस जब तूल पकड़ा तो फौरन मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई। उम्मीद थी कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के लंबे हाथों से कातिल नहीं बच पाएगा लेकिन ये उम्मीद तब धुंधली होने लगी जब सीबीआई की दो-दो टीमों की जांच के बाद कातिल पकड़ में नहीं आया। और तो और पहली टीम को बेहद ही नाटकीय तरीके से हटा दिया गया।
दूसरी टीम ने भी जांच की लेकिन पुख्ता सबूत नहीं मिलने के बाद दूसरी टीम ने क्लोज़र रिपोर्ट लगा दी। आखिरकार विशेष अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट को ही एफआईआर में तब्दील कर सुनवाई की और आरुषि के मम्मी-पापा राजेश और नूपुर तलवार को अपनी ही बेटी के कत्ल का दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि शक कितना भी गहरा क्यों न हो उसे सबूत नहीं मान सकते।
वहीं सीबीआई के पूर्व डायरेक्टर एपी सिंह ने इंडिया टीवी से बातचीत में इस बात का खुलासा किया है कि सीबीआई के पास नूपुर और राजेश तलावर के खिलाफ सबूत नहीं थे। बिना सबूत के ही सीबीआई ने नूपुर और राजेश तलवार को दोषी मानते हुए चार्जशीट दाखिल कर दी। उन्होंने कहा, 'यह मामला मेरे ज्वाइन करने से पहले पूरा हो चुका था। मैंने बैठक की तो लगा कि इसमें एविडेंश हैं पर चार्जशीट लायक एविडेंश नहीं है। हमने कोर्ट को बताया लेकिन कोर्ट ने कहा कि जो एविडेंश दे रहे हैं उससे चार्ज चला सकते हैं।
एपी सिंह ने कहा कि इस मामले के जांच अधिकारी जांच को आगे बढ़ाना चाहते थे। एपी सिंह ने कहा, 'आईओ और लीगल ऑफिसर ने कहा था सर्वेंट के ख़िलाफ़ कोई एविडेंश नहीं है इसमें आगे की जांच होनी चाहिए। इसपर कोर्ट ने कहा कि ये एविडेंश काफी हैं। कोर्ट ने फैक्ट्स देखे। दोनों पक्षों के गवाहों को एक्ज़ामिन किया। उसके बाद इनको कन्विक्ट किया।'
हाईकोर्ट ने भी सीबीआई पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि आपने अपने मन से एक कहानी गढ़ी फिर उसमें मनमुताबिक किरदार फिट किए और पूरी फिल्म बना दी। कोर्ट ने कहा कि आप लोगों ने कानून की किताब पढ़ना तो दूर कभी देखी भी है या नहीं। CBI ने केस बनाया था कि आरूषि और घऱ के नौकर हेमराज के बीच रिश्ते थे। राजेश तलवार ने हेमराज को आरूषि के कमरे में देखा और गुस्से में आकर मार दिया। फिर हेमराज के शव को बेडशीट में घसीटते हुए छत पर ले गए।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस थ्योरी पर कौन भरोसा करेगा, कोई सबूत नहीं है। कोई गवाह नहीं हैं, कोई परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं हैं। अगर हेमराज को आरूषि के कमरे में मारा गया तो उसके खून के निशान उस कमरे से क्यों नहीं मिले? फोरेंसिक रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि कमरे में आरूषि का खून तो मिला लेकिन किसी बेडशीट पर या कमरे की दीवार पर हेमराज के खून के निशान नहीं मिले।
सीएफएसएल दिल्ली की रिपोर्ट में कहा गया है कि आरुषि के तकिये, बेडशीट और गद्दे की जांच में हेमराज का कोई डीएनए या ब्लड नहीं पाया गया था। जबकि सीडीएफडी, हैदराबाद के डीएनए एक्सपर्ट ने बताया कि कमरे से सिर्फ आरुषि का ही डीएनए मिला था। इन रिपोर्ट्स को हाईकोर्ट ने एक्सेप्ट किया। अगर हेमराज की लाश को सीढ़ियों से घसीट कर छत पर ले जाया गया तो सीढियों पर खून के निशान होने चाहिए थे वो भी नहीं मिले। अब तक इस मामले में पता ही नहीं चल पाया है कि
- हत्या के लिए इस्तेमाल हथियार कहां है?
- दीवार पर खूनी पंजे के निशान किसके थे?
- स्कॉच की बोतल पर किसके हाथ के निशान थे?
- सीढ़ियों पर खून के धब्बे किसके थे?
- आरुषि के खून से सने कपड़े कहां हैं?
- फिंगर प्रिंट के साथ छेड़छाड़ किसने की?
- हत्या की रात क्या बाहर से कोई आया था?
- हेमराज की लाश घर की छत पर कौन ले गया?
- और सबसे बड़ा सवाल कि आरुषि-हेमराज के कत्ल का मकसद क्या था?