नयी दिल्ली: ‘आधार’ जारी करने वाले प्राधिकरण यूआईडीएआई के पास ऐसे लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है जिन्हें 12 अंकों की बॉयोमीट्रिक पहचान संख्या नहीं होने के कारण लाभ देने से मना कर दिया गया। उच्चतम न्यायालय को आज इसकी जानकारी दी गयी। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण( यूआईडीएआई) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी( सीईओ) अजय भूषण पांडेय ने शीर्ष न्यायालय को यह जानकारी दी। न्यायालय ने उनसे पूछा था कि क्या इससे जुड़ा कोई आधिकारिक आंकड़ा है कि कितने लोगों को‘ आधार’ नहीं होने या पहचान की पुष्टि नहीं होने पर लाभ देने से इनकार किया गया।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस बात की ओर इशारा किया कि समय के साथ अंगुलियों के निशान हल्के पड़ जाते हैं और इससे अनभिज्ञ और निरक्षर व्यक्ति‘ असहाय’ हो जाएगा। पीठ ने पांडेय को पावर प्वाइंट प्रजेंटशन की अनुमति दी।
संविधान पीठ ने कहा, ‘‘ हमारे पास कोई ऐसा माध्यम नहीं है, जिससे यह मालूम चले कि कितने लोगों को लाभ देने से मना किया गया है... सेवाओं के इनकार को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा है।’’ इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण शामिल हैं।
महाराष्ट्र कैडर के1984 बैच के आईएएस अधिकारी पांडेय ने कहा कि यूआईडीएआई के पास ऐसे लोगों का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, जिन्हें आधार नहीं होने या पहचान की पुष्टि नहीं होने की स्थिति में लाभ देने से मना किया गया हो। उन्होंने कहा कि आंकड़ों के अपडेट नहीं होने की स्थिति में पहचान की पुष्टि नहीं होने पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कैबिनेट सचिव सहित अन्य अधिकारियों की ओर से अधिसूचना जारी किये जा चुके हैं।
‘ आधार’ डेटा को लेकर उत्पन्न शंकाओं को समाप्त करने का आग्रह करते हुए यूआईडीएआई के सीईओ ने कहा कि‘ आधार’ लोगों को‘ ठोस, आजीवन, पुन: इस्तेमाल में लाये जाने वाला और राष्ट्रभर में ऑनलाइन पुष्टि किये जाने योग्य’ पहचान पत्र है। इसके बाद पीठ ने कहा कि कुछ मौकों पर एक समय के बाद अंगुलियों के निशान जैसे बॉयोमीट्रिक विवरण हल्के पड़ जाते हैं और अनभिज्ञ एवं निरक्षर व्यक्ति शायद उन्हें अपडेट नहीं करा पाएगा और ऐसे में‘ असहाय’ हो जाएगा।
पीठ ने न्यायमूर्ति के एस पुत्तास्वामी के वकील श्याम दीवान के आरोपों का भी हवाला दिया। संविधान पीठ ने पूछा कि आधार पंजीयन करने वाले6.83 लाख प्रमाणित निजी ऑपरेटरों में से49,000 को यूआईडीएआई ने ब्लैकलिस्ट क्यों किया है। इस पर सीईओ ने कहा, ‘‘ आधार पंजीयन निशुल्क है। वे लोगों से रुपये ले रहे थे। हमें शिकायतें मिली थीं।’’ उन्होंने साथ ही कहा कि इन ऑपरेटरों ने पंजीयन के समय गलत जानकारी भरी थी और‘ चूंकि हमारी नीति भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने की है, इसलिए उन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया।’ शुरुआत में पांडेय ने दो प्रोजेक्टरों के माध्यम से प्रेजेंटशन दिया और कहा, ‘ एक बहुत बड़ी आबादी के पास राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य पहचान पत्र नहीं था।’
उन्होंने इस संदर्भ में बच्चों, बुजुर्गों, विस्थापितों, श्रमिकों, गरीबों और बेसहारा लोगों का जिक्र किया। सीईओ ने कहा कि आधार के लिए महज लोगों के फोटो, पता, अंगुलियों के निशान और आंखों की पुतलियों से संबंधित डेटा की ही जरूरत पड़ती है। इसमें‘ धर्म, जाति, जनजाति, भाषा, पात्रता का ब्योरा, आय या स्वास्थ्य विवरण और पेशे’ से जुड़ी जानकारी नहीं मांगी जाती है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई अब इस स्तर पर पहुंच चुका है कि वह प्रतिदिन15 लाख आधार नंबर जारी करने, मुद्रण और उन्हें भेजने में सक्षम है।