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दिल्ली के सुल्तान का अनसुना सच, 'पद्मावती' से पहले अलाउद्दीन खिलजी की असली कहानी

सुल्तान खिलजी ने क़रीब 20 साल तक दिल्ली की गद्दी पर राज किया। इतिहास भले ही अलाउद्दीन खिलजी को जैसे भी याद करे लेकिन लोककथाओं की रूमानियत में वो सिर्फ एक खलनायक है। उसके दिलो-दिमाग़ में चितौड़गढ़ की रानी पद्मावती को अपनी हरम की चांदनी बनाने का फितूर

Written by: India TV News Desk
Published : November 07, 2017 12:34 IST

padma

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आखिरकार वो दिन भी आया जब अलाउद्दीन ने चितौड़ के किले के भीतर दोस्त बनकर कदम रखा और आइने में रूपसी रानी पद्मावती का दीदार भी किया। कहते हैं कि चित्तौड़गढ़ किले में वो ऐतिहासिक आईना आज भी महफूज़ है। शीशे में रानी पद्मावती का बेमिसाल रूप देख अलाउद्दीन मतवाला हो गया और उसने किले के भीतर ही ठान लिया कि वो किसी कीमत पर रानी पद्मावती को हासिल करके रहेगा लेकिन इसके लिए अलाउद्दीन ने ताकत के बजाय धोखे का सहारा लिया। इधर अलाउद्दीन खिलजी के नापाक मंसूबों से राजा रतन सिंह पूरी तरह अनजान थे। मेहमान नवाजी की रवायत के मुताबिक रतन सिंह अलाउद्दीन खिलजी को किले के बाहर तक छोड़ने आए लेकिन तभी अलाउद्दीन असल ज़ात में आ गया और उनसे राजा रतन सिंह को बंदी बना लिया।

जैसे ही रतन सिंह के बंदी बनाए जाने की ख़बर पद्मावती को मिली उन्होंने फैसला किया कि अगर खिलजी ने उसे हासिल करने के लिए धोखे का सहारा लिया है तो वो भी धोखे से ही जवाब देंगी। पद्मावती ने अपने ख़ासमख़ास शूरवीरों और अपने चाचा गोरा और भतीजे बादल समेत सभी सैनिकों को पैग़ाम भिजवाया। रानी पद्मावती के दिलो-दिमाग में राजा की रिहाई और अलाउद्दीन खिलजी को जौहर दिखाने का पूरा ख़ाका तैयार था।

रानी पद्मावती ने पैगाम भिजवाया कि वो खिलजी के डेरे में आने को तैयार हैं क्योंकि वो अपने पति रतन सिंह को आख़िरी बार देखना चाहती हैं। इतना ही नहीं, उनके साथ पर्देदार पालकियों में उनकी सहेलियां भी आएंगी। पद्मावती की खुफिया योजना से अनजान खिलजी सारी शर्तों पर तैयार हो गया। चितौड़गढ़ महल में 800 डोलियां सजाई गईं और हर डोली में सैनिक बैठ गए। कहारों के भेस में भी सैनिक थे, ये सारे अलाउद्दीन की छावनी में दाखिल हो गए। योजना के मुताबिक सैनिकों ने तलवारें निकालीं, ज़बर्दस्त युद्ध हुआ और रतन सिंह को रानी ने अपने पराक्रम और सूझबूझ से छुड़ा लिया।

अपनी नाकामी पर अलाउद्दीन खिलजी गुस्से से आग बबूला हो गया और अपने सैनिकों के साथ चितौड़गढ़ पर हमला बोला दिया। अलाउद्दीन चितौड़गढ़ किले में घुसने में तो नाकाम रहा लेकिन उसने किले की घेराबंदी इतनी सख्त कर दी कि अंदर खाने पीने की सप्लाई ही बंद हो गई। दिन बीतने के साथ हालात बिगड़ने शुरु हो गए। चितौड़गढ़ किले में मौजूद लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए। अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती या फिर जंग से कम पर राज़ी नहीं था।

आखिरकार राजा रावल रतन सिंह ने युद्ध का रास्ता अख़्तियार करने का फैसला किया। चित्तौड़गढ़ के अभेद्य किले का दरवाज़ा खोल दिया गया। रतन सिंह और उनके वीर सैनिक धड़धड़ाते हुए किले से बाहर निकले और फिर अलाउद्दीन की फौज से ज़बर्दस्त जंग हुई। इस जंग में राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हुए और चितौड़गढ़ की सेना के हज़ारों सैनिकों के सिर धड़ से अलग हो गए। ये खबर सुनकर रानी पद्मावती ने एक बड़ा फ़ैसला लिया। पद्मावती ने अलाउद्दीन की हरम की रानी बनने की जगह जौहर का रास्ता चुना।  

पद्मावती के कहने पर चितौड़गढ़ किले के भीतर एक विशाल चिता जलाई गई। इस चिता में रानी ने ख़ुद को समर्पित कर दिया। किले की सारी औरतों ने भी जौहर का रास्ता चुना। इस तरह रानी पद्मावती के अफ़साने में अलाउद्दीन को चितौड़ के किले में राख के अलावा कुछ नसीब नहीं हुआ।

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