देहरादून. उत्तराखंड में 82 साल की बुजुर्ग महिला को फौजी पति की मौत के 70 साल बाद पेंशन का हक मिला है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार, साल 1952 में परुली देवी महज 12 साल की थीं, जब शादी के सिर्फ दो महीने बाद भारतीय सेना के सैनिक उनके पति ने आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने ऐसा क्यों किया, इसकी जानकारी परुली देवी को नहीं है। पति की मौत के बाद समय बितता गया और कई साल बीत गए। हालांकि इस दौरान एकबार अपने गांव में महिलाओं के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने अपने ही जैसी एक सैनिक की विधवा से उसे मिल रही पेंशन के बारे में सुना, जिसके बाद उनके मन में पेंशन मिलने की उम्मीद जगी। अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, परुली देवी को 7 साल की लड़ाई के बाद पेंशन का हकदार घोषित कर दिया गया।
पेंशन की हकदार घोषित किए जाने के बाद परुली देवी ने कहा कि यह पैसों को लेकर नहीं बल्कि मेरे नुकसान का प्रमाण है। उनके पति गगन ने साल 1946 में कुमाऊं रेजीमेंट ज्वॉइन की थी। जब गगन सिंह की मौत हुई, जब वो बहुत छोटी थीं।
उनके भतीजे Kavendra Lunthi ने बताया कि उन्होंने कभी अपने पति की मिलिट्री सर्विस से मिलने वाली पेंशन के बारे में नहीं सोचा। रिटायर्ड अस्सिटेंट ट्रेजरी ऑफिसर दिलीप सिंह भंडारी ने कहा कि पिथौरागढ़ में बहुत से लोग मिलिट्री की नौकरी करते हैं लेकिन पेंशन सिस्टम के बारे में नहीं जानते हैं खासकर सैनिकों की विधवाएं। इसलिए उन्होंने रिटायरमेंट के बाद उन्होंने ऐसी महिलाओं की मदद करने का फैसला किया।
ऐसी ही एक महिला जिसकी दिलीप भंडारी ने साल 2014 में मदद की थी, वो लिनथुरा गांव में रहती थी। दिलीप ने बताया, "उन्होंने मुझसे एक सवाल किया, 'क्या मैं योग्य हूं?' मुझे इसके बारे में सोचना पड़ा।"
उन्होंने कहा कि इस केस की शुरुआत करना काफी कठिन था। यह बहुत पुराना केस था। उनके पति की लड़ाई में या पोस्टिंग में मृत्यु नहीं हुई थी। भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग के नियमों के अनुसार, मृत्यु के लिए पेंशन तब दी जाती है जब किसी की सेवा में मृत्यु हो जाती है, या सैन्य सेवा के कारण या युद्ध या आतंकवाद विरोधी अभियानों के कारण। फैमिली पेंशन नेचुरल डेथ के केस में आखिरी सैलरी का तीस फीसदी दी जाती है। गगन की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से नहीं हुई थी।
भंडारी ने बताया, "लेकिन जुलाई 1977 में एक महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस रूल को चैलेंज किया था कि सिर्फ वार विडो ही आर्मी से पेंशन के काबिल होंगी। साल 1985 में जज ने उनके फेवर में फैसला सुनाया था। "
उन्होंने मामले को याद किया और परुली के दावे के पक्ष में इसका हवाला दिया। भंडारी ने बताया, " मैंन इलाहाबाद में Controller General of Defence Accounts औऱ रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट सेटर में मामला उठाया। सात साल तक चले संवाद के बाद आखिकार कुमाऊं रेजीमेंट ने परुली देवी का दावा मंजूर कर लिया है। उनकी पेंशन 11,700 रुपये अब शुरू हो गई है और जुलाई 1977 से अबतक के पेंशन बकाया के रूप में उन्हें 20 लाख रुपये दिए जाएंगे।"
एक सैनिक की विधवा के तौर पर पहचान मिलने के बाद परुली ने कहा कि वो खुश हैं कि अब उन्हें मान्यता मिली, उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इसके बगैर काट दी।