नई दिल्ली: देश में 4 करोड़ 70 लाख बच्चे जो 5 साल से कम उम्र के हैं, ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां CPCB द्वारा तय मानक से PM10 का स्तर अधिक है। इसमें 1 करोड़ 70 लाख वे बच्चे भी शामिल हैं जोकि मानक से दोगुने PM10 स्तर वाले क्षेत्र में निवास करते हैं। सबसे ज्यादा बच्चे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र और दिल्ली में वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं। इन राज्यों में लगभग 1 करोड़ 29 लाख बच्चे रह रहे हैं जो 5 साल से कम उम्र के हैं और प्रदूषित हवा की चपेट में हैं। ग्रीनपीस इंडिया ने सोमवार को अपनी वार्षिक रिपोर्ट 'एयरपोक्लिपस' का दूसरा संस्करण जारी किया।
इस रिपोर्ट में 280 शहरों के एक साल में पीएम10 के औसत स्तर का विश्लेषण किया गया है। इन शहरों में देश की 63 करोड़ आबादी (करीब 53 प्रतिशत जनसंख्या) रहती है। बाकी 47 प्रतिशत (58 करोड़) आबादी ऐसे क्षेत्र में रहती है जहां की वायु गुणवत्ता के आंकड़े उपलब्ध ही नहीं हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि इन 63 करोड़ में से 55 करोड़ लोग ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां पीएम10 का स्तर राष्ट्रीय मानक से कहीं अधिक है। वहीं इसमें से 18 करोड़ लोग केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा तय सीमा 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से दोगुने ज्यादा प्रदूषण स्तर वाले इलाके में रहते हैं।
ग्रीनपीस के सीनियर कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, ‘भारत में कुल जनसंख्या के सिर्फ 16 प्रतिशत लोगों को वायु गुणवत्ता का रियल टाइम (उसी समय) आंकड़ा उपलब्ध है। यह दिखाता है कि हम वायु प्रदूषण जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिये कितने असंवेदनशील हैं। यहां तक कि जिन 300 शहरों में वायु गुणवत्ता के आंकड़े मैन्यूअल रूप से एकत्र किए जाते हैं वहां भी आम जनता को वह आसानी से उपलब्ध नहीं है।’ अगर औसत पीएम 10 स्तर के आधार पर रैंकिग को देखें तो पता चलता है कि साल 2016 में दिल्ली 290 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के साथ शीर्ष पर बना हुआ है। वहीं फरीदाबाद, भिवाड़ी, पटना क्रमश: 272, 262 और 261 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के साथ दिल्ली से थोड़ा ही पीछे हैं।
आश्चर्य की बात है कि देहरादून (उत्तराखंड) भी शीर्ष दस की सूची में है, जहां औसत पीएम10, 238 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा है। 2016 में सूची में शामिल 280 शहरों में शीर्ष 20 शहरों का औसत वार्षित पीएम10 स्तर 290 से 195 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रहा है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि इनमें से एक भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानक (20 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर औसत) को पूरा नहीं करते। इतना ही नहीं 80 प्रतिशत भारतीय शहर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर औसत) को भी पूरा नहीं करते।
सुनील का कहना है, ‘दिल्ली वायु प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित शहर बना हुआ है, जहां का औसत पीएम10 स्तर राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से पांच गुना अधिक है। सिर्फ 20 प्रतिशत भारतीय शहरों का राष्ट्रीय और सीपीसीबी के मानकों पर खरा उतरना यह बताता है कि इस समस्या से निपटने के लिए तय समय सीमा के भीतर एक ठोस व कठोर कार्ययोजना का अभाव है।’ रिपोर्ट में यह सामने आया है कि वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर गंगा के मैदानी इलाके में हैं। हालांकि दक्षिण भारत के शहरों में भी एक तय समय सीमा के भीतर योजना बनाकर वायु गुणवत्ता को राष्ट्रीय मानक के अंदर लाने की जरूरत है।
पर्यावरण मंत्रालय ने राज्य सभा में हाल ही में राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम बनाने की घोषणा की थी। इस कार्यक्रम को व्यापक, व्यवस्थागत और तय समय-सीमा के भीतर जिम्मेवारी तय करके ही सफल बनाया जा सकता है। इस कार्यक्रम को सार्वजनिक करने की जरूरत है, जिससे इसे जमीन पर उतारा जा सके और उसमें आम आदमी भी अपनी भागीदारी निभा सके। इस कार्यक्रम को हर राज्य सरकार और शहर के स्तर पर विभिन्न प्रदूषण के कारणों की पहचान करके उसका समाधान निकाला जा सकता है।