लाहौर: भारत की आर्थिक राजधानी में 26/11 को हुए नरसंहार के, सोमवार को 10 बरस हो गए लेकिन पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी एक अदालत में, खौफनाक मुंबई हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के आरोपों का सामना कर रहे लश्कर ए तैयबा के सात सदस्यों के खिलाफ सुनवाई अभी भी चल ही रही है। यह स्थिति तब है जब इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने 2015 में आतंकवाद विरोधी अदालत को दो महीने में मामले की सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया था।
हमले के मास्टर माइंड कहलाने वाला, लश्कर ए तैयबा का कमांडर जकीउर-रहमान लखवी एक तरह से बरी हो गया है क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने उसे मिली जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की योजना का कोई संकेत नहीं दिया है।
सुनवाई में आ रहे नाटकीय मोड़, न्यायाधीशों को बार बार बदले जाने और एक अभियोजक की हत्या के चलते लग रहा है कि अन्य छह संदिग्धों को भी बरी किया जा सकता है। पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा के दस आतंकवादियों ने 26 नवंबर 2008 को मुंबई में समन्वित तरीके से 12 जगहों पर गोलीबारी और बम से हमला किया था। आतंकियों का यह कहर, 29 नवंबर तक, चार दिन चला था। इस हमले में कुल 166 लोग मारे गए थे और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे।
पुलिस ने नौ हमलावरों को मार गिराया था जबकि एक आतंकवादी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया था। भारत में सुनवाई के बाद उसे फांसी दे दी गई थी। पाकिस्तान में लश्कर ए तैयबा के सात संदिग्धों लखवी, अब्दुल वाजिद, मजहर इकबाल, हमाद अमीन सादिक, शाहिद जमाल रियाज, जमील अहमद और युनूस अंजुम के खिलाफ हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने का आरोप है। इनके खिलाफ 2009 से सुनवाई जारी है।
इस्लामाबाद को, खास कर राजनीतिज्ञों को अहसास है कि इस हमले की वजह से दोनों देशों के बीच दोस्ताना संबंध बनाने के तमाम प्रयास नाकाम हो गए। बहरहाल, इस बारे में राय अलग अलग है कि पाकिस्तान में दोषियों को सजा दिए जाने से दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो पाएंगे या नहीं।