नई दिल्ली: सशस्त्र बलों के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा है कि हर साल बल के करीब 200 कर्मी अशक्त हो जाते हैं। उन्होंने इसके लिए पर्वतीय इलाकों में सड़क दुर्घटनाओं, हिमस्खलन और लड़ाइयों के दौरान सैनिकों के घायल होने को मुख्य वजह बताया है।
सशस्त्र बल मेडिकल सेवा के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन पुरी ने कहा कि सशस्त्र बल के कर्मी सिर्फ मेरूदंड और हाथ-पैर के अशक्त होने की स्थिति का सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि कई बार पेट और सीने में चोट के चलते आंत और फेफड़े भी प्रभावित हो जाते हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा कि सशस्त्र बल मेडिकल सेवा का मुख्य उद्देश्य नुकसान को कम कर सैनिकों की जान बचाना है। उन्होंने पिछले 10 साल के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा कि हर साल सशस्त्र बल के 200 कर्मी गंभीर रूप से अशक्त हो जाते हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है। लड़ाइयों में घायल होना एक वजह है लेकिन इसकी तुलना में पर्वतीय इलाकों में सड़क दुर्घटनाएं और हिमस्खलन के चलते ज्यादा सुरक्षा बल घायल हुए हैं।
थल सेना जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में आतंकवाद निरोध और आंतक रोधी अभियानों में शामिल है। सिर्फ थल सेना में ही 10 लाख कर्मी हैं। लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने कहा कि अशक्त कर्मियों की समस्याओं को कम करने के लिए थल सेना ने कदम उठाए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘शरीर के अंगों की अशक्तता से जुड़ी समस्याओं को हल करने के लिए थल सेना का एक कृत्रिम अंग केंद्र (एएलसी) है, जो पुणे स्थित एक शीर्ष संस्थान है।’’ सेना चंडीगढ़ और गुवाहाटी में भी पांच एएलसी उप केंद्र तथा दिल्ली एवं लखनऊ में एक-एक बेस हॉस्पिटल बना रही है।