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चीन में महात्मा गांधी के प्रति क्या है सोच? पढ़िए वहां काम कर रहे भारतीय मूल के पत्रकार का लेख

गांधी जी दुनिया के कई बड़े हिस्सों में गए लेकिन वे कभी चीन नही गए। फिर भी चीन के लोग महात्मा गांधी जी के बारे में जानते हैं और उनके प्रति श्रृद्धा का भाव रखते हैं

Edited by: India TV News Desk
Published on: October 02, 2018 10:54 IST
Know what China thinks about our Father of Nation Mahatma Gandhi- India TV Hindi
Know what China thinks about our Father of Nation Mahatma Gandhi

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सम्मान न केवल पूरे भारत में किया जाता है बल्कि दुनिया के अनेक देशों में भी किया जाता है। गांधी जी जो भी करते थे वो सबके हित के लिए करते थे और उनके काम करने के तरीकों में उनके बहुत से सिद्धांत शामिल होते थे। गांधी जी दुनिया के कई बड़े हिस्सों में गए लेकिन वे कभी चीन नही गए। फिर भी चीन के लोग महात्मा गांधी जी के बारे में जानते हैं और उनके प्रति श्रृद्धा का भाव रखते हैं, क्योंकि वे उनके बारे में पढ़ते हैं। चीन में उन पर सैकड़ों किताबें लिखी गईं हैं।

साल 1920 के समय जब महात्मा गांधी जी का प्रभाव भारत के कोने-कोने में फैल रहा था तब चीन एक ऐसा देश था जब वहां के कई लोग प्रेरणा के लिए उनकी ओर देख रहे थे। उनके मन में एक ही सवाल था कि क्या सत्याग्रह और अहिंसा का पालन करने से उनके देश का भला होगा? उन दिनों भारत में जहां ब्रिटिश राज था वहां चीन में ब्रिटेन के साथ-साथ अमरीका और फ्रांस जैसे बड़े देशों की ताकत का जोर था। इसके साथ ही चीन में अलग-अलग गुटों में लड़ाई के कारण गृह युद्ध जैसी स्थिति बन गई थी।

गांधी जी समकालीन भारत के महान क्रान्तिकारी नेता थे। वे एक असाधारण सामाजिक और धार्मिक सुधारक भी थे। वे आजीवन भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष करते रहे। अंत में उन्होंने अपने प्राण भी न्योछावर कर दिये। उनकी भावना अभी भी चीनी दिलों में जीवित है। चीनी लोग मानते हैं कि गांधी जी चीन को प्यार करते थे और उनके देश के विकास पर भी ध्यान देते थे। महात्मा गांधी चीनी जनता द्वारा चलाये जा रहे जापान-विरोधी मुद्दे के प्रति सैंद्धान्तिक और नैतिक तौर पर समर्थन करते थे। आज चीनी जनता भी उन्हें भारतीय जनता के समान याद करती है।

पूरे चीन में गांधी जी की एकमात्र मूर्ति राजधानी पेइचिंग के छाओयांग पार्क में लगी है, जहां सामने एक मानव-निर्मित तालाब है और वो मारकेज़, इग्नेसी जान पेडेरेव्स्की और ह्रिस्टो बोटेव जैसी शख़्सियतों से घिरे हुए हैं। चीनी जनता गांधी और गांधीवाद से अपरिचित नहीं है। चीनी लोग आज भी उनके जीवन जीने के तरीकों से प्रभावित हैं।

चीनी बुद्धिजीवी वर्ग बड़ी दिलचस्पी के साथ अपने देश की जनता को गांधी जी के बारे बताता रहा है। चीनी क्रान्ति के पूर्व 20 सालों में गांधी जी की आत्मकथा, उनके विचार एवं कार्यों से संबंधित लगभग 30 प्रकार की पुस्तकें चीनी भाषा में प्रकाशित और प्रचलित हुई थीं। औसतन 1 साल में एक से अधिक प्रकार की पुस्तकें प्रकाशित हुईं। इन पुस्तकों में सिर्फ गांधी जी की आत्मकथा के अनुवाद ही 4 प्रकार के थे। इनके अलावा गांधी जी की प्रतिनिधि-रचना- ‘भारतीय स्वायत्त’ इत्यादि चीनी भाषा में अनुवादित हुई। चीन की एक महत्वपूर्ण पत्रिका ‘पूर्वी पत्रिका’ में गांधी जी और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित लेख जैसे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के नेता- गांधी, गांधीवाद क्या है, गांधी की संक्षिप्त आत्मकथा, भारत की अंहिसक क्रांति, भारतीय स्वराज्य आन्दोलन आदि विषयों पर लगभग 70 लेख प्रकाशित हुए।

इस पत्रिका ने “गांधी जी और नया भारत” शीर्षक से एक विशेषांक भी प्रकाशित किया था। इसमें बहुत लेख छपे। चीन की मुक्ति के बाद तो गांधी जी से संबंधित लेख और पुस्तकें तो पहले से और अधिक प्रकाशित हुईं। यहां तक कि कुछ विश्वविद्यालयों में गांधी जी के बारे में विशेष अध्ययन भी करवाया जाने लगा। इससे जाहिर होता है कि गांधी और गांधीवाद चीन में पर्याप्त चर्चा के विषय रहे और चीनी चिंतन नें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

जिस दौरान गांधी जी ने अपने प्रसिद्ध असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया, उस समय चीनी जनता ने उस पर खासा ध्यान दिया। उदहारण के लिए, साल 1920-1924 तक के पहले असहयोग आंदलन के दौरान ‘पूर्वी पत्रिका’ में 20 लेख प्रकाशित हुए। इन लेखों में ज्यादातर गांधी और गांधीवाद की बढ़चढ़ कर सराहना की गई। गांधी जी को भारत के विचार-जगत के नेता, महान क्रांतिकारी, समाज सुधार के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेखों में व्यक्त आम धारनाएं ये थीं कि गांधी जी की शक्ति ही तत्कालीन भारतीय मानसिक एवं भौतिक जगत का संचालन करती थी। वे पूर्व की शक्ति एवं सभ्यता के प्रतिनिधि थे। सत्य पर अडिग और हिंसा के विरोधी माने जाने वाले गांधी जी चीनी जनता की नजरों में भारत के टालस्टाय थे।  

गांधीवादी सोच ने यानी अहिंसक आंदोलनों ने भारतीय स्वाधीनता-संग्राम को एक दृष्टि ही नहीं, बल्कि एक दिशा भी दी। चीनी विद्वानों के लिए यह एक नया दर्शन था। खादी और चरखा आंदोलन गांधी जी के प्रगतिशील विचारों के परिचायक थे। उन लोगों का मानना था कि गांधी जी का मानवतावादी दृष्टिकोण सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए भी रहा है। गांधी जी की देशभक्ति, उनकी अटूट तपश्चर्या, उनके त्याग एवं बलिदान का प्रभाव भारत के अतिरिक्त एशिया के कई अन्य देशों पर भी पड़ा। अफ्रीका, लातिन अमेरिका ने भी गांधी जी के साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन से बहुत कुछ प्राप्त किया।

चीनी जनता का गांधी जी के प्रति सदैव श्रृद्धा का भाव रहा है। चीनी जनता अच्छे से जानती है कि चीन के सबसे कठिन दौर में गांधी जी ने सैद्धांतिक और भौतिक तौर पर उसका समर्थन किया था। चीनी जनता के दिलों में यह याद अभी भी बाकि है और वह इसके लिए आभार मानती है। आज दोनों देशों की परंपरागत मैत्री को और अधिक विकसित करने के लिए महात्मा गांधी को याद करना और अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है। दोनों देशों की बीच सदियों से चली आ रही पंरपरागत मैत्री को प्रगाढ़ करने में गांधी जी की विचारधारा भविष्य में भी अपना बहुमूल्य योगदान दे सकती है। इन दोनों देशों की मैत्री अवश्य ही विश्व कल्याण में सहायक सिद्ध होगी।

( यह लेख अखिल पराशर ने लिखा है जो चाइना रेडियो इंटरनेशनल में पत्रकार हैं)

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