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रिलायंस जियो,एयरटेल को करोड़ो रुपयो का अनुचित लाभ : कैग

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग को आड़े हाथों लेते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने शुक्रवार को कहा कि विभाग ने मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस जियो इंफोकॉम को ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम में वॉयस कालिंग

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Updated : May 09, 2015 12:47 IST
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रिलायंस जियो,एयरटेल को करोड़ो रुपयो का अनुचित लाभ : कैग

नई दिल्ली: दूरसंचार विभाग को आड़े हाथों लेते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने शुक्रवार को कहा कि विभाग ने मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस जियो इंफोकॉम को ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम में वॉयस कालिंग सेवा कारोबार की अनुमति देकर कंपनी को 3,367.29 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाया, हालांकि कंपनी ने इसका जोरदार ढंग से इनकार किया।

इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) इंफोटेल ने 2010 में बोली में सभी को पीछे छोड़ते हुए बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम हासिल किया। इस लाइसेंस के तहत वायस सेवा की अनुमति नहीं थी। इस कंपनी को बाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अधिग्रहण कर लिया और इसका नाम बदलकर रिलायंस जियो रख दिया।

संसद में आज पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘रिलायंस जियो इंफोकॉम लि. (पूर्व में मेसर्स इंफोटे) ने अगस्त 2013 में 15 करोड़ रुपये का एकीकृत लाइसेंस (यूएल) का प्रवेश शुल्क तथा एक लाइसेंस व्यवस्था से दूसरी में प्रवेश के लिए 1,658 करोड़ रुपये अतिरिक्त माइग्रेशन शुल्क जमा कराया। यह माइग्रेशन शुल्क 2001 में निर्धारित मूल्य के आधार पर दिया गया। इससे मेसर्स रिलायंस जियो इंफोकाम को 3,367.29 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ हुआ।’’

रिलायंस जियो, ने इसका विरोध करते हुए कहा उसका कोई पक्ष नहीं लिया गया। कंपनी ने कहा, ‘‘हम अपना कारोबार हमेशा लागू कानूनों के अनुसार करते हैं और दूरसंचार विभाग तथा अन्य नियामकीय प्राधिकरणों द्वारा तय नियम तथा दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हैं।’’

कंपनी ने कहा है, ‘‘हमने अपना सभी स्पेक्ट्रम बाजार मूल्यों के अनुसार खुली और पारदर्शी बोली प्रक्रिया में हासिल किया है। इसकी शर्तें सभी बोली लगाने वाली कंपनियों के लिए समान थी। इसके अलावा बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करते हुए सेवाओं के लिए संबंधित लाइसेंस हासिल करने के लिए दूरसंचार विभाग के नियम भी सभी सफल बोली लगाने वालों के लिए एक जैसे थे।’’

कैग की रिपोर्ट में चेन्नई दूरसंचार सर्किल को तमिलनाडु दूरसंचार सर्किल के साथ विलय करने के  2005 में जल्दबाजी में लिए गए फैसले से भारती एयरटेल को भी 499 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए भी दूरसंचार विभाग को जिम्मेदार ठहराया गया है।

कैग ने कहा कि नीलामी नियमों में बोलीदाताओं के लिए योग्यता संबंधी शर्तों में वित्तीय मानदंडों का अभाव और कंपनी में बने रहने की शर्त आदि का अभाव था तथा बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम के उपयोग की गुंजाइश के मामले में असामानता जैसी कमियां थीं।

ऑडिटर ने कहा कि इंफोटेल ने 2010 में हुई बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए बोली में अधिकतर दूरंसचार कंपनियों को नीलामी की होड़ से बाहर कर दिया जो डेटा के अलावा वॉयस सर्विसेज दे सकती थीं।

कैग की रिपोर्ट के अनुसार इंफोटेल ने नीलामी के बाद नेटवर्क कोड का अनुरोध किया जिससे वे आईएसपी लाइसेंस के तहत मंजूरी के अलावा वॉयस सर्विस उपलब्ध कराने में सक्षम होते।

कैग ने कहा कि दूरसंचार विभाग ने दूरसंचार लाइसेंस के लिये प्रवेश शुल्क और राष्ट्रीय आईएसपी परमिट के बीच अंतर के बराबर अतिरिक्त शुल्क के भुगतान पर 2013 में बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम के साथ आईएसपी लाइसेंस के माइग्रेशन की अनुमति दी जिससे वे बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम का उपयोग कर मोबाइल वॉयस सेवा उपलब्ध कराने में समर्थ हुए।

रिपोर्ट के अनुसार बीडब्ल्यूए स्पेक्ट्रम पर वॉयस टेलीफोनी सेवा की अनुमति देकर दूरसंचार विभाग ने स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) की मांग नहीं की जब कि इस तरह का भुगतान वायर टेलीफोन सेवा प्रदाता मुख्य दूरसंचार कंपनियों ने किया था।

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