थैलेसीमिया (Thalassemia) ऐसी बीमारी है, जिसके बारे में अधिकतर लोग अंजान होते हैं। यह एक जेनेटिक बीमारी होती है। इस बीमारी में शरीर में हीमोग्लोबिन का असामान्य तरीके से बनता है। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इस बीमारी के शिकार बच्चें भी हो सकते हैं। इस बीमारी के बारे में समय से जानकर अगर इलाज कराया जाए तो मरीज की जान बच सकती हैं।
थैलेसीमिया के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है। आप भी जानिए थैलेसीमिया बीमारी के बारे में सबकुछ।
क्या है थैलेसीमिया?
थैलीसीमिया(Thalassemia) में सीधे खून पर प्रभाव पड़ता है। शरीर के हीमोग्लोबिन का स्तर प्रभावित होता है जिससे धीरे-धीरे खून की कमी होने लगती है। डॉक्टरों के अनुसार एक नॉर्मल व्यक्ति के शरीर में लाल रक्त कण(RBC) की आयु करीब 120 दिन होती है लेकिन जिन व्यक्तियों को थैलेसीमिया होती है उनकी आरबीसी की उम्र 20 दिन ही रह जाती है। जिसके कारण शरीर में ठीक ढंग से कून नहीं बन पाता है।
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थैलेसीमिया के लक्षण
- भूख कम लगना
- बच्चे में चिड़चिड़ापन होना
- सामान्य तरीके से विकास न होना
- थकान होना
- गहरा और गाढ़ा यूरीन आना।
- सांस लेने में समस्या।
- कमजोरी महसूस होना
- त्वचा का पीला रंग (पीलिया) हो जाना
- पेट में सूजन होना
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थैलेसीमिया का ट्रीटमेंट
थैलेसीमिया का ट्रीटमेंट इसके टाइप और गंभीरता पर निर्भर करता है।.
- ब्लड ट्रांसफ्यूज़न
- बौन मैरों ट्रांसप्लांट
- दवाएं
- अगर सर्जरी संभव है तो पीहा या पित्ताशय की थैली को हटा देना।
- इस बीमारी से ग्रसित बच्चों को एक मगीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की भी जरूरत भी पड़ती है।
हो सकता है कि डॉक्टर आपको विटामिन्स और सप्लीमेंट खाने से मना कर दें। दरअसल अगर आपको ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की जरूरत है लेकिन अतिरिक्त शरीर में अतिरिक्त आयरन जमा कर लेते हैं। जो आसानी से खत्म नहीं होता है। जिसके कारण आयरन ऊतकों में निर्माण कर सकता है, जो संभावित रूप से घातक हो सकता है।