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वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे 2020: बच्चे में दिखें ये लक्षण तो वह है ऑटिज्म का शिकार, जानें कारण और ट्रीटमेंट

साल 2016 के आकड़ों की बात करें तो 68 बच्चों में से एक एक बच्चा इस बीमारी से ग्रसित है। इतना ही नहीं ये विकार लड़कों में लड़कियों से 5 गुना अधिक पाया जाता है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : April 01, 2020 21:01 IST
world autism awareness day 2020
Image Source : PIXABAY world autism awareness day 2020

हर साल 2 अप्रैल को दुनियाभर में  वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे मनाया जाता है। इसे मानने का कारण है कि लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करना। साल 2016 के आकड़ों की बात करें तो 68 बच्चों में से एक एक बच्चा इस बीमारी से ग्रसित है। इतना ही नहीं ये विकार लड़कों में लड़कियों से 5 गुना अधिक पाया जाता है। भारत की बात की जाए तो करीब एक करोड़ बच्चे इस रोग से ग्रसित है। जानें आखिर क्या है ये बीमारी और इसके लक्षण।

क्या होता है ऑटिज्म?

ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो ज्यादातर बच्चों में शुरू के तीन साल में दिखने लगता है। डॉक्टर्स के अनुसार जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी के कारण महिला में रूबेला होने पर भी बच्चें इस रोग के शिकार हो जाते हैं। कई केस ऐसे भी है जिनको लेकर कहा जाता है कि किसी जीन या कोई केमिकल अनबैलेंस होने के कारण यह बीमारी हो जाती है।  ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों में तीन तरह के विकास बहुत धीमी गति से होते हैं जिन्हें ट्रायड ऑफ इम्पेयरमेंट कहते हैं। ये वर्बल या नॉन वर्बल कम्युनिकेशन, सोशल इंटरेक्शन, इमेजिनेशन हैं।

ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज्म के दौरान बच्चों में आंखें मिलाकर बात न कर पाना, बात समझने में मुश्किल, शब्दों की बहुत कम समझ होना, रचनात्मक भाषा की कमी, दूसरों की बातों को बेमतलब दोहराना,बिना एक्सप्रेशन वाली टोन के बात करना, बिल्कुल बात न कर पाना।, गुनगुन करके बात करना या बात करते हुए संगीत निकलना, बड़बड़ाना, हमेशा गुमसुम बैठे रहना, रोबोटिक स्पीच।

ऑटिज्म होने का कारण
वास्तव में ये रोग क्यों होता है इस बारे में अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। यह दिमाग के कुछ हिस्सों में हो रही समस्याओं के कारण होता है।  लड़कियों की तुलना में लड़कों में ऑटिज्म का खतरा चार गुना अधिक होता है। कई बार यह जैनेटिक होता है। बुजुर्ग माता-पिता के कारण इसका बच्चों पर ऑटिज्म का प्रभाव अधिक होता है। 

ट्रीटमेंट
इसका कोई सटिक इलाज नहीं है। डॉक्टर्स बच्चों की स्थिति और लक्षण के बाद तय करते है कि क्या इलाज करना है। इसके ट्रीटमेंट में बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी आदि कराए जाते है जिससे बच्चों को उन्हीं की भाषा में समझा जा सके। इस थेरेपी से बच्चे काफी हद तक सही हो जाते हैं। जिसके कारण वह अजीब हरकतें को करना कम कर देते हैं। दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने लगते हैं। इस थेरेपी में डॉक्टर के साथ-साथ माता-पिता का विशेष हाथ होता है। उन्हें अपने बच्चे का खास ध्यान रखना पड़ता है। 

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