दुनियाभर में दिल की बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं और आय दिन ऐसी खबर आती है कि किसी व्यक्ति की मौत हार्ट फेल होने से या फिर दिल का दौड़ा पड़ने से हो गई। आज हम दिल से जुड़ी दो स्थितियों के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि हार्ट फेल फेलियर (Heart Failure) और हार्ट अटैक (Heart attack) में क्या अंतर है। जब किसी का हार्ट फेल होता है तो क्या होता है और जब किसी को हार्ट अटैक आता है तो स्थिति कैसे अलग होती है। तो, आइए समझते हैं इन दोनों का अंतर विस्तार से। डॉक्टर अयान कर, कंसल्टेंट-कार्डियोलोजी, एन.एच, आर.एन टैगोर हॉस्पिटल, कोलकाता
हार्ट फेल कैसे होता है?
हार्ट फेल, एक ऐसी स्थिति है जो तब विकसित होती है जब आपका हृदय आपके शरीर की जरूरतों के लिए पर्याप्त रक्त यानी खून पंप नहीं करता है। यह तब भी हो सकता है जब आपका दिल और इसकी मांसपेशियां खून को ठीक से पंप करने में बहुत कमजोर हो जाए।
हार्ट फेल होने के कारण
हार्ट फेल अचानक से तब सामने आता है जब आपका दिल कमजोर हो जाता है। यह आपके हृदय के एक या दोनों साइड को प्रभावित कर सकता है। ध्यान देने वाली बात ये है कि बायीं (Left-sided) ओर और दायीं ओर हार्ट फेल (right-sided heart failure) अलग-अलग कारणों से होता है। जैसे
-कोरोनरी हृदय रोग
-हृदय की सूजन
-हाई बीपी
-कार्डियोमायोपैथी
-अनियमित दिल की धड़कन शामिल है।
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हार्ट फेल होने के लक्षण
हार्ट फेल होने के लक्षण जल्दी नहीं दिखते। लेकिन अंततः, आपको थकान और सांस लेने में तकलीफ महसूस हो सकती है और आपके शरीर के निचले हिस्से, पेट के आसपास या गर्दन में तरल पदार्थ जमा हो सकता है। इसके अलावा लिवर फेल होना, किडीना और फेफड़े आदि की स्थिति को भी प्रभावित करती है और अचानक से इनका काम काज भी बंद हो सकता है।
हार्ट अटैक क्यों अलग है?
हार्ट अटैक या दिल का दौरा तब पड़ता है जब दिल में खून का फ्लो कम हो हो जाता है। ये कई बार ये ब्लॉकेज की वजह से भी होता है। ब्लॉकेज आमतौर पर कोरोनरी धमनियों में फैट, कोलेस्ट्रॉल और अन्य पदार्थों के निर्माण के कारण होता है। हार्ट अटैक से पहले कई लक्षण महसूस होते हैं जैसे दिल पर प्रेशर महसूस करना और सांस लेने में दिक्कत। इसके अलावा थकान, बहुत ज्यादा पसीना और शरीर के कुछ हिस्सों में दर्द महसूस होना भी हार्ट अटैक का लक्षण हो सकता है।
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सुझाव-
अपने दिल का चेकअप समय-समय पर करवाते रहें। लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करवाएं और लक्षणों को बिलकुल भी नजरअंदाज न करें। कोशिश करें कि हर 6 महीने पर ये टेस्ट जरूर करवाएं।
Source: nhlbi.nih.gov