क्या आपने सुना है Brain Rot, जी हां 'Brain Rot' ये शब्द आजकल काफी पॉपुलर हो रहा है। क्या कभी आपका पाला पड़ा है इस लफ्ज़ से? अगर ये नहीं सुना तो 'दिमाग का दही होना' तो आपको पता ही होगा। बस ये समझ लीजिए कि Gen-Zee ने इसका नाम बदल दिया है। 'जेनरेशन Zee' यानि 12 से 27 साल के बीच की उम्र वाले सबसे ज्यादा ऑनलाइन रहने वाले प्राणी हैं। इन्हीं की वजह से ये वर्ड 'Brain Rot' इस साल यानि 2024 में Oxford Word of the year बना है।
क्या है Brain Rot कंडीशन
अब आपको समझाते हैं कि ये 'Brain Rot' शब्द क्या है और क्यों चर्चा में है। दरअसल अजकल सुबह उठते ही फोन में रील स्क्रोल करना, ऑनलाइन वीडियोज देखना, ये बहुत नॉर्मल हो गया है, लेकिन अब यही आदत दिमाग पर भारी पड़ रही है। मोबाइल स्क्रॉल करते करते कुछ देर बाद, एक ही तरह का ऑनलाइन कॉन्टेंट कंज्यूम करते-करते मेंटल फटीग होने लगता है। इससे चिड़चिड़ापन महसूस होता है। दरअसल ये साइन है स्ट्रेस लेवल हाई होने का सका अंदाजा आपको नहीं होता है।
मोबाइल का दिमाग पर असर
लंबे वक्त तक स्ट्रेस लेवल बढ़ने का असर शरीर के मेटाबॉलिक सिस्टम पर पड़ता है। हार्मोन्स डिस्टर्ब होते हैं। जिससे बॉडी के बायोमार्कर्स बिगड़ते हैं फिर तरह-तरह की बीमारियों के आने का गेट वे बन जाता है। मोबाइल फोन पर ज्यादा देर रहने का मतलब है कि हर वक्त ऊंगलियां फोन पर, स्क्रीन पर नजर गड़ाए रहना, गर्दन झुकाए रहना। अब इसका असर तो शरीर पर पड़ेगा ही। तभी तो AIIMS ने पैनिक बटन दबा दिया है। सरकार को ये सलाह दी जा रही है कि मुमकिन हो तो 16 साल तक, नहीं तो 10 साल तक के बच्चों के लिए, सोशल मीडिया का इस्तेमाल रिस्ट्र्क्टेड हो। सिर्फ बच्चे ही क्यों मोबाइल में ऐसी सेटिंग होनी चाहिए कि एक लिमिट के बाद ये सर्विस ही बंद हो जाए। ताकि 'Brain Rot' के साथ 'Body Rot' होने की नौबत ना आए। स्वामी रामदेव से जानते हैं दिमाग को कैसे स्वस्थ रखें?
मोबाइल का इस्तेमाल?
- युवा 24 घंटे में से 5-6 घंटे सेलफोन पर रहते हैं
- नौकरी वाले 80% फोन पर रहते हैं
- 20% पढ़ाई करने वाले मोबाइल पर रहते हैं
- MNC's वाले 8 घंटे लैपटॉप 5-6 घंटे मोबाइल पर रहते हैं
मोबाइल से होने वाले नुकसान
- चिड़चिड़ापन गुस्सा करना
- रुटीन के काम ना करना
- मेंटली वीक फिजिकली कमजोर
- फोन से 22% बच्चे ऑटिज्म के शिकार
मोबाइल से बढ़ रही हैं ये बीमारियां
- मोटापा
- डायबिटीज
- हार्ट प्रॉब्लम
- कंसंट्रेशन बिगड़ना
- नर्वस प्रॉब्लम
- स्पीच प्रॉब्लम
- नजर कमजोर
- हियरिंग प्रॉब्लम
स्मार्टफोन का सही इस्तेमाल ज़रूरी
- 43% नोमोफोबिया यानि मोबाइल खोने का डर
- 43% रिंग-एंग्जायटी यानि फोन ना बजने से घबराहट
- 25% फैंटम रिंगिंग यानि फोन रिंग होने का आभास होना
- गाड़ी चलाते हुए मोबाइल का इस्तेमाल करने से बढ़ रही हैं दुर्घटनाएं
- 4 गुना ज्यादा बढ़े मामले 10 % मौत की वजह बना मोबाइल
स्मार्टफोन विजन सिंड्रोम
- नजर कमजोर
- ड्राईनेस और रेडनेस
- पलकों में सूजन
- तेज रोशनी से दिक्कत
- एकटक देखने की आदत
कानों का दुश्मन स्मार्टफोन
- सिरदर्द और अनिद्रा
- ईयरफोन और तेज शोर से बहरापन