Highlights
- मोबाइल की आदत बच्चों को फिज़िकली ओर मेंटली भी वीक बनाती है।
- ऑनलाइन गेमिंग चलते माता-पिता साइबर फ्रॉड के शिकार हो रहे हैं।
बदलती और स्मार्ट होती दुनिया का स्याह चेहरा साफ दिखने लगा है। बच्चों में ऑनलाइन गेमिंग की आदत अब खतरनाक होती जा रही है। पढ़ाई के नाम पर देर रात तक गेम खेलना। जीत पर और आगे के स्टेप को जीतने के लिए खेलना, हारने पर हताश होना और फि रतोड़फोड़ करना, रोकने पर गुस्सा दिखाना । ऑनलाइन गेमिंग से बच्चे चिड़चिड़े और हिंसक हो रहे हैं इतना ही नहीं चोरी तक करने लगे हैं।
गेमिंग की लत में डूबे बच्चों की दुनिया मोबाइल में सिमटकर रह गई है। दोस्तों और परिवार से दूर तो हुए ही हैं फिज़िकली ओर मेंटली भी वीक हो गए हैं। गेमिंग को लेकर ग्राउंड रियलिटी ये है कि हर 5 में से 1 टीन एजर मोबाइल में गेम डाउनलोड करता है। साइकोलॉजिस्ट के पास आ रहे हर 5 में से 2 मामले ऑनलाइन गेमिंग के हैं। इतना ही नहीं भारत ऑनलाइन गेम इंडस्ट्री में तेजी से ऊपर आया है। इस वक्त चौथे नंबर पर है। देश में 60% से ज्यादा ऑनलाइन गेम खेलने वाले 24 साल से कम उम्र के हैं।
14 से 25 साल की उम्र वाले सबसे ज्यादा ग्राफिक्स कार्ड खरीद रहे हैं और इसकी वजह से पेरेंट्स साइबर फ्रॉड के भी शिकार हो रहे हैं। अब इन तमाम परेशानियों से तो तभी बचा जा सकता है। जब बच्चे स्मार्ट फोन का सही इस्तेमाल समझे। माता-पिता में डिजिटल लिटरेसी बढ़े। तो चलिए इसके लिए योगगुरु की मदद लेते हैं। 'नेशनल पेरेंट्स डे' पर बच्चों को मेंटली और फिजिकली स्ट्रॉन्ग बनाते हैं। पेरेंट्स के चेहरे पर मुस्कान लाते हैं।
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गेमिंग की आदत का बच्चों पर असर
- चिड़चिड़ापन या गुस्सा करना
- रुटीन के काम न करना
- पढ़ाई में मन न लगना
- मेंटली और फिजिकली कमज़ोर होना
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मोबाइल वीडियो गेम के साइड इफेक्ट्स
- 95.65% बच्चे तनाव में आते हैं
- 80.43% दिन-रात खेलने की सोचते हैं
- दूसरो से पीछे छूटने का डर रहता है
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मोबाइल की आदत कैसे छुड़ाएं
- हर एक्टिविटी पर ध्यान दें
- बच्चों के साथ वक्त बिताएं
- आउटडोर गेम्स खिलाएं
- ऑनलाइन क्लास की जानकारी रखें
- दोस्त की तरह बच्चों को समझाएं