शरीर को स्वस्थ्य रखने के लिए योग करना बहुत ही जरूरी है लेकिन षट्कर्म का अपना एक अलग महत्व है। आमतौर पर इन क्रियाओं को योगी लोग करते हैं। लेकिन इसे आम व्यक्ति भी आसानी से कर सकता हैं। षट्कर्म करने से शरीर अंदर से साफ और शुद्ध हो जाता है यानि शरीर के विषाक्त तत्व बाहर निकल जाते हैं। इसमें शरीर को 6 तरीके से डिटॉक्स किया जाता है।
स्वामी रामदेव के अनुसार हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते है-वात, पित्त और कफ जो सामान्यतः किसी को भी हो सकते है| इस षट्कर्म का अभ्यास करने से आप इन दोषो और अन्य रोगों से मुक्ति पा सकते है। षट्कर्म क्रिया के अंतर्गत नेति, कपालभांति, धौति, नौलि, बस्ति और त्राटक क्रिया आती हैं। इस क्रिया से शरीर के सारे अंग को मजबूत होते हैं। कई रोगों से मुक्ति मिलेगी। टॉक्सिन हटने से हड्डियां मजबूत होती है। हार्मोंस बढ़ाने में मदद करती है। इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के साथ एनर्जी लेवल को भी बढ़ता है।
आपको बता दें कि इनमें से कुछ क्रियाएं बहुत कठिन होती हैं इसलिए इनका अभ्यास अनुभवी योगाचार्य के सानिध्य में करना चाहिए। आइये जानते है कैसे करें इन्हें।
1- नेति क्रिया
इस क्रिया के को 4 तरीकों से किया जाता है। जो सूत्र नेति, जल नेति, क्षीर -दूध नेति, घृति नेति -तेल नेति और दुग्ध नेति होती। इन्हें करने सर्दी-जुकाम, एलर्जी, बुखार, गले नाक की अच्छी तरीके से सफाई हो जाती है।
सूत्र नेति
इस क्रिया के द्वारा शरीर का शुद्धिकरण होता है। इस क्रिया के लिए पहले धागे का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अब यह आसानी से मेडिकल स्टोर में मिल जाता है। इस क्रिया में पहले इस सूत्र नेति को पानी से साफ करके नाक से धीरे-धीरे डाला जाता है जिसे मुंह से निकाला जाता है। मिर्गी के दौरे या अधिक चक्कर आते है तो सूत्र नेति को करने से बचें। किसी भी तरह की एनर्जी, नाक के अंदर मांस या हड्डी बढ़ जाएं तो सूत्र नेति फायदेमंद है।
जल नेति
यह जल द्वारा किया जाने वाली एक क्रिया है। इससे नैजल ट्रैक की सफाई ठीक ढंग से हो जाती है। इस जल में आप चाहे तो थोड़ा सा सेंधा नमक भी डाल सकते है। इसके लिए एक तरफ से नाक के होल में पानी डाला जाता है वह दूसरी तरह के होल से आसानी से निकल आता है। इसके साथ ही आपको बता दें कि इस क्रिया को करने के लिए खास पात्र की आवश्यकता होती है। जल नेति करने से माइग्रेन, सर्दी जुकाम में लाभ मिलता है।
क्षीर -दूध नेति
इस नेति को दूध से किया जाता है। ये जल नेति की तरह किया जाता है। बस जल की जगह दूध का इस्तेमाल किया जाता है। इस नेति को करने से पित्त, वात, डिप्रेशन, आंखों की ज्योति के साथ सिरदर्द में फायदेमंद है।
घृति नेति -तेल नेति
इसे गाय के घी या फिर तिल के तेल से किया जाता है। इसे भी जलनेति और क्षीर नेति की तरीके से किया जाता है।
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2- धौति क्रियाएं
यह 2 तरह की होती है पहली वस्त्र धौति और दूसरी जल धौति
वस्त्र धौति
धौति का मतलब धोना और साफ करना। इस क्रिया को करने से हाइजेस्टिव सिस्टिम ठीक रहता है। इसके साथ ही पित्त और कफ को दूर करने के साथ शरीर को पूरी तरह नॉर्मल करता हैं। इस क्रिया में 21 फीट लंबी धोती यानी कपड़े की 1-2 इंच चौड़ाई का कपड़ा होता है। इसे करने के आधा घंटे पहले पानी में भिगो दें। इसके बाद इसे थोड़ी सी आगे मोड़ मुंह से अंदर डाले। ये आसानी से आपके अंदर चली जाएगी। इसके बाद इसे आराम-आराम से निकाल लें। इससे कफ की समस्या से निजात मिलेगा।
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जल धौति
इस क्रिया को करने से एसिडिटी और कफ की समस्या से निजात मिलता है। इसके लिए करीब 2 लीटर गर्म पानी में नीबू और सेंधा नमक मिलाएं। मल विसर्जन करते समय जिस प्रकार बैठते हैं पानी पेट भर पी लें । पानी पीने के बाद खड़े होकर दाएं हाथ की तर्जनी तथा मध्यम उंगलियों को गले में डाल कर पेट के पानी को बाहर निकालें।
3- बस्ति क्रिया
इस क्रिया में डालकर तेल लगी नली को मुंह में डालकर घुटने तक भरे किसी साफ पानी के बड़े बर्तन में बैठकर उड्डीयानबंध लगाता है। जब वह उड्डीयानबंध खोलता है तो पानी उसकी गुदा की ओर बड़ी आंत में धीरे-धीरे भरने लगता है। इसके अलावा इसके लिए साधक खूब सारा पानी पीकर बादाम रोगन लगाकर चिकने किए हुए पाइप में डालता है। जो आसानी से आपके पेट से पानी निकल जाएगा। इसके बाद 5 योगासन करें।
षट्कर्म करते समय बरतें ये सावधानी
- सूत्र नेति करने वाले एक दिन पहले रात को बादाम रोगन या अणु तेल नाक में डाल लें। ऐसा करने से आपकी नाक मुलायम हो जाएगी। जिससे सूत्र नेति करते समय खून नहीं आएगा। ट
- हाई ब्लड प्रेशर , हार्ट संबंधी समस्या हैं तो वह बिना योगाचार्य की मौजदूगी में करने से बचें।
- जलनेति करते समय मुंह बंद न रखें यानी सांस मुंह से लेनी है। इसके साथ ही नाक से पानी को खिंचना नहीं है। इससे वह माथे में पानी, घी, तेल चढ़ जाएगा। जिससे आपको दर्द की समस्या हो सकती है।