Highlights
- हार्निया मरीजों के लिए खुशखबरी
- अब 10 से 20 गुना तक सस्ता हो जाएगा हार्निया के ऑपरेशन का खर्च
- केजीएमयू के डाक्टरों ने खोजा इलाज का नया तरीका
Hernia new treatment Technique: हार्निया से परेशान मरीजों के लिए अब तक की सबसे बड़ी राहत भरी खबर है। यूपी की की राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के डॉक्टरों ने हार्निया के इलाज की एक ऐसी नई तकनीकि खोज निकाली है, जिससे न सिर्फ मरीजों का इलाज सस्ता हो सकेगा बल्कि इसमें संक्रमण की संभावना भी नगण्य हो जाएगी। यह आपरेशन नई तकनीकि से चुटकियों में हो सकेगा। केजीएमयू के डॉक्टरों ने इस नई तकनीकि से अब तक 40 मरीजों में हार्निया का सफल ऑपरेशन कर दिखाया है।
केजीएमयू के डाक्टरों के अनुसार हार्निया का ऑपरेशन करते समय मरीजों में एक जाली प्रत्यारोपित की जाती है। यह कार्य लैप्रोस्कोपिक तकनीकि से किया जाता है। इसमें समय बहुत कम लगता है। मरीज को तकलीफ भी नहीं होती। इसमें सिर्फ एक छोटा चीरा लगाने की जरूरत पड़ती है। इससे घाव जल्दी ही सूख जाता है। मरीज की रिकवरी तेजी से होती है। संक्रमण की गुंजाइश भी नगण्य हो जाती है। इस नई तकनीकि से मरीजों का सही, सटीक और सस्ता इलाज करना संभव हो गया है।
सिर्फ पांच से सात हजार रुपये आएंगे खर्च
नई तकनीकि से ऑपरेशन कराने का खर्च सिर्फ पांच से सात हजार रुपये ही आएगा। जबकि अभी तक हार्निया के ऑपरेशन में 50 हजार से एक लाख रुपये तक लग जाते थे। निजी अस्पताल तो मरीजों से मनमानी वसूली करते थे। इसमें मरीज को तकलीफ भी ज्यादा होती थी। साथ ही संक्रमण की संभावना भी अधिक रहती थी। केजीएमयू के डाक्टरों ने बताया कि नई तकनीकि में हार्निया के मरीज में एक जाली प्रत्यारोपित कर दी जाती है, जिसकी कीमत दो से पांच हजार तक होती है। अभी तक लैप्रोस्कोप से जाली लगाने का खर्च ही 25 से 30 हजार रुपये आता था। मगर अब ऑपरेशन से लेकर दवाओं तक पर करीब सात हजार रुपये खर्च आने का अनुमान है। ऑपरेशन वाले दिन ही मरीज की छुट्टी भी कर दी जाती है। मरीज को अस्पताल में पहले कई दिन रुकना पड़ता था।
नई तकनीकि में बीच में प्रत्यारोपित होती है जाली
पहले पेट के आखिरी सतह पर जाली को प्रत्यारोपित किया जाता था, लेकिन अब इसे बीच में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह जल्दी फिट बैठ जाती है। इससे संक्रमण का आशंका बेहद कम रह जाती है। इस तकनीकि का पेपर जर्मनी के वियना में हुए वर्ल्ड कांग्रेस में पढ़ा गया है। इस विधा को वर्ल्ड कांग्रेस ने मान्यता भी दे दी है।
क्यों लगाई जाती है जाली
हार्निया का ऑपरेशन करने के बाद आंत बाहर आ जाती है। इसे रोकने के लिए खास तरह की जाली मरीज के पेट में लगा दी जाती है। जिससे की आंत बाहर नहीं आए। बाद में घाव सूख जाता है और मरीज चंगा हो जाता है। लैप्रोस्कोप में सिर्फ एक छोटा चीरा लगाकर ऑपरेशन को अंजाम दे दिया जाता है। जबकि सामान्य विधि में पूरे पेट को चीरना पड़ता था। तब संक्रमण की आशंका ज्यादा रहती थी। इस विधि में पेट में छोटा सुराख कर जाली लगा दी जाती है। इसकी खासियत है कि यह जाली आंतों की जाली से चिपकती नहीं है। इससे आंतों की कार्यक्षमता भी प्रभावित नहीं होती।
हार्निया होने पर क्या होता है
हार्निया पीड़ित मरीज को देर तक खड़े रहने में मुश्किल होती है। मल-मूत्र का त्याग करते समय भी उसे भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। पेट के अंदर साइड में कुछ फूला हुआ महसूस हो सकता है। हल्का दर्द भी होता है। शरीर में हमेशा भारीपन महसूस होता है। अगर ऐसा लक्षण दिखे तो मरीज को तत्काल सतर्क हो जाना चाहिए। किसी नजदीकी अस्पताल में जाकर इसकी जांच करानी चाहिए। अल्ट्रासाउंड कराने से यह आसानी से पकड़ में आ जाती है।