छाती के अन्दर फेफड़े के चारों ओर पानी के जमाव को मेडिकल भाषा में 'प्ल्यूरल इफ्यूजन' या 'हाइड्रोथोरेक्स' कहते हैं। जब लिम्फ नामक के लिक्विड पदार्थ का जमाव होता है तो इसे 'काइलोथोरेक्स' कहते हैं। लंग्स के ऊपरी भाग से रिसते पानी को सोखने की क्षमता होती है। इस वजह से पानी रिसने सोखने के बीच एक बैलेंस बना रहता है। पर जब कभी फेफड़े के ऊपरी भाग में पानी की अधिक मात्रा हो जाती है तो यह बैलेंस बिगड़ जाता है। जिसके कारण फेफड़ों के चारों ओर पानी इकट्ठा हो जाता है।
फेफड़ों के चारों ओर पानी जमा होने के कई कारण हो सकते हैं। जिसमें सबसे बड़ा कारण टीबी माना जाता है। टीबी इंफेक्शन के इस पानी को अगगर समय रहते नहीं रोका गया तो यह आपके लंग्स को डैमेज कर सकते हैं। टीबी के अलावा निमोनिया के कारण भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है।
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देश में फेफड़ों में पानी के जमाव का मुख्य कारण कैंसर है। छाती में कैंसर की वजह से पानी जमा होने से फेफड़े, ब्रेस्ट कैंसर और गिल्टी का कैंसर हो सकता है। इसके अलावा आगे चलकर यह लीवर, पेट, दिल को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए जरूरी है कि समय रहते इसका इलाज किया जाए।
स्वामी रामदेव के अनुसार फेफड़े के पानी को नैचुरल तरीके से भी हटाया जा सकता है। इसके साथ ही प्राणायाम जरूर करें।
फेफड़ों का पानी हटाने के लिए प्राणायाम
भस्त्रिका
इस प्राणायाम को 3 तरह से किया जाता है। पहले में 5 सेकंड में सांस ले और 5 सेकंड में सांस छोड़े। दूसरे में ढाई सेकंड सांस लें और ढाई सेकंड में छोड़ें। तीसरा तेजी के साथ सांस लें और छोड़े। इस प्राणायाम को लगातार 5 मिनट करें। इस प्राणायाम को रोजाना करने से हाइपरटेंशन, अस्थमा, हार्ट संबंधी बीमारी, टीवी, ट्यूमर, बीपी, लिवर सिरोसिस, साइनस, किसी भी तरह की एनर्जी और फेफड़ों के लिए अच्छा माना जाता है।
अनुलोम- विमोम
सबसे पहले आराम से बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें। ध्यान रहे कि इस मुद्रा में आपकी रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी होनी चाहिए।अब बाएं हाथ की हथेली को ज्ञान की मुद्रा में बाएं घुटने पर रखें। इसके बाद दाएं हाथ की अनामिका यानि कि हाथ की सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बाएं नथुना पर रखें। अब अंगूठे को दाएं वाले नथुना पर लगा लें। इसके बाद तर्जनी और मध्यमा को मिलाकर मोड़ लें। अब बाएं नथुना से सांस भरें और उसे अनामिका और सबसे छोटी उंगली को मिलाकर बंद कर लें। फौरन ही दाएं नथुना से अंगूठे को हटाकर सांस बाहर निकाल दें। अब दाएं नथुना से सांस भरें और अंगूठे से उसे बंद कर दें। इस सांस को बाएं नथुना से बाहर निकाल दें। अनुलोम विलोम का यह पूरा एक राउंड हुआ। इसी तरह के कम से कम 5 बार ऐसा करें।
सूर्यभेदी प्राणायाम
सबसे पहले पद्मासन की अवस्था में बैठ जाए। इसके साथ ही हाथ प्राणायाम मुद्रा में रखें। अब तर्जनी और मध्यमा अंगुलियों को माथे पर रख लें और बाएं नाक की छेद को बाकि दो अंगुलियों से बंद कर, दाएं नाक की छेद से सांस को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। फिर दाएं नाक से आवाज़ करते हुए लंबी सांस भीतर लें, और उसके बाद थोड़ी देर के लिए सांस अंदर रोक लें। फिर बिना आवाज किए बाईं नाक से सांस बाहर निकाल दें। यह एक चक्र सूर्यभेदी प्राणायाम कहलाता है। इस प्रकार 15-20 बार इसका अभ्यास करें। अंत में बाईं नाक से सांस बाहर निकालकर हाथ नीचे लाएं व थोड़ी देर के लिए शांत भाव से बैठे रहे। वैसे तो यह प्राणायाम तीनों बन्धों के साथ किया जाता है, लेकिन प्रारम्भ में बिना लंबी सांस रोके ही इसे करे।
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कपालभाति
कपालभाति को करने के लिए सबसे पहले सुखासन में बैठ जाएं और आंखें बंद कर लें। अब दोनों नथुना से गहरी सांस भीतर की ओर लें। अब सांस को बाहर की तरफ छोड़ दें। इस बात का ध्यान रहे कि सांस को बल पूर्वक बाहर निकालना है और आराम से भीतर लेना है। इस तरह से कम से कम 20 बार ऐसा करें।
फेफड़ो का पानी हटाने के लिए आयुर्वेदिक उपाय
- रोजाना स्वाहारि और पंचकोल का काढ़ा पिएं।
- स्वाहारी प्रवाही, स्वाहारि वटी या स्वाहारि गोल्ड की 1-1 गोली सुबह-दोपहर और शाम को खाएं।
- दूध में हल्दी और शीलाजीत डालकर पिएं।
- खाने के बाद लक्ष्मी विलास और संजीवनी वटी का सेवन करें।
- दिनभर दिव्यपेय का ही पानी पिएं। इसके लिए 1 लीटर पानी में 4 चम्मच दिव्य पे डाले।
- ठंडा दूध या पानी बिल्कुल भी ना पिएं।