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Mother's Day 2022: मां भी थकती है... नई मां कई बार हो जाती है पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार, जानिए लक्षण और बचाव

Mother's Day 2022: पोस्टपार्टम डिप्रेशन नई-नई माँ बनी महिलाओं को होने वाले अवसाद को कहते हैं। जो अक्सर बच्चे को जन्म देने के बाद से लेकर 6-12 हफ्ते की अवस्था में नई मां को हो सकता है।

Edited by: Jyoti Jaiswal @TheJyotiJaiswal
Updated on: May 06, 2022 15:29 IST
Mother's Day 2022- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK Mother's Day 2022

Highlights

  • बेबी ब्लूज़ 80% माँओं को प्रभावित करता है।
  • बेबी ब्लूज़ वाले लक्षण दो हफ़्ते से ज़्यादा रहें तो चिकित्सकीय सहायता ज़रूर लें

Mother's Day 2022: 8 मई को मदर्स डे है। मई के दूसरे रविवार को ये खास दिन सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन लोग अपनी मां पर प्यार लुटाते हैं, लेकिन मदर्स डे पर हम आज उन मांओं की बात करेंगे जो बच्चे के जन्म देने के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन नई-नई माँ बनी महिलाओं को होने वाले अवसाद को कहते हैं। जो अक्सर बच्चे को जन्म देने के बाद से लेकर 6-12 हफ्ते की अवस्था में नई मां को हो सकता है। लोग इसे समझते नहीं हैं और कहते हैं तुम तो अभी मां बनी हो खुश क्यों नहीं हो? तुम्हें खुश होना चाहिए। अगर आपके आस-पास भी ऐसी मां है जो इसका शिकार है तो इसे समझिए, इस मदर्स डे हमारी यही कोशिश है कि हम आपको इसके बारे में बता सकें, जिससे आप इससे जागरूक हो सकें और लोगों को भी इस बारे में बता सकें।

क्यों होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन?

इनक्रेडिबल आयुर्वेद की डायरेक्टर और आयुर्वेदिक फिजिशियन नाजिया खान ने बताया कि इसके कई कारण होते हैं। जिनमें हॉर्मोन्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, टेस्टोस्टेरोन, थायरोक्सिन आदि हॉर्मोन्स का स्तर अचानक परिवर्तित होने से मूड स्विंग्स होते हैं। हॉर्मोन्स के साथ-साथ मानसिक परेशानियां, तनाव, थकान, प्रसव-पीड़ा आदि से बच्चे के जन्म के बाद की परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाने में परेशानी के चलते माँ अवसाद में चली जाती है। 

आंकड़ों के मुताबिक भारत में 20% माँएं इससे प्रभावित हैं। असल आंकड़ा इससे ज़्यादा भी हो सकता है, क्योंकि कई बार कोई समस्या को जानने-समझने वाला ही नहीं होता तो बहुत से केस बिन रिपोर्ट के ही रह जाते हैं।

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किसे हो सकता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन?

डॉक्टर नाजिया खान के मुताबिक यह किसी को भी हो सकता है। कोई श्योर शॉट थ्योरी नहीं है। सर्व-सुविधायुक्त ख़ुशनुमा पारिवारिक माहौल में रह रही एकदम स्वस्थ महिला को भी हो सकता है। पहले बच्चे के टाइम नॉर्मल महिला को दूसरे बच्चे के बाद भी हो सकता है, बेटी या बेटा, मनचाही संतान प्राप्त होने के बाद भी हो सकता है क्योंकि हॉर्मोनल बदलाव बड़ा कारण हैं। फिर भी उन महिलाओं को प्रभावित करने की ज़्यादा सम्भावना होती है, जिनकी डिप्रेशन की हिस्ट्री रही हो, पारिवारिक माहौल और रिश्ते तनावपूर्ण हों, पति या घरवालों का सहयोग नहीं मिलता हो, जॉब, कॅरियर, पैसे की दिक़्क़तें चल रही हों, किसी अपने को खोया हो, अबॉर्शन या स्टिल बर्थ या ऐसा ही कोई बुरा अनुभव रहा हो, प्री-मेच्योर बेबी हो, बच्चे के साथ कोई स्वास्थ्य समस्या हो, प्रेग्नेंसी या डिलीवरी में कॉम्प्लीकेशंस रही हों, दर्द और थकान से उबर नहीं पा रही हों, ठीक से खान-पान, आराम, नींद न मिल रही हो, ब्रेस्टफीडिंग में परेशानी हो आदि।

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डॉक्टर नाजिया खान ने बताया कि बेबी ब्लूज़ 80% माँओं को प्रभावित करता है। कभी-कभी पिता को भी। हॉर्मोन्स लेवल चेंज, दर्द, थकान, नींद की कमी आदि से मूड स्विंग्स होते हैं। बात-बेबात रोना, चिड़चिड़ाना, ग़ुस्सा होना, भूख न लगना, बच्चा न जगाए फिर भी नींद न आना, बेवजह की उदासी, तबीयत गिरी-गिरी सी लगना, किसी पर भी भड़क जाना, बच्चे से लगाव महसूस न होना, अच्छे से देखभाल नहीं कर पाने की गिल्ट/अपराधबोध होना,  हर माँ इनमें से किसी न किसी लक्षण से गुज़रती ही है, ख़ासकर जब नींद पूरी नहीं होती। 

कब डॉक्टर से मिलें?

डॉक्टर नाजिया खान के मुताबिक अगर ये लक्षण दो हफ़्ते बाद भी रहते हैं और अधिक गम्भीर रहते हैं, इंटेंसिटी ज़्यादा है या बच्चे से अटैचमेंट ही महसूस नहीं हो रहा, गोद में लेने, फीड कराने की इच्छा नहीं होती, उसके प्रति लापरवाही हो। ख़ुद के बारे में, ख़ुद के शरीर के बारे में बुरा महसूस होता है, वज़न, फिगर आदि की बहुत चिंता होती है, अपने लिए कुछ करने का मन नहीं करता, या अच्छी माँ न होने का गिल्ट आता है मन में, ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने की इच्छा होती हो तो यह PPD है। समय पर उचित मनोवैज्ञानिक सलाह और चिकित्सा नहीं मिलने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति या बच्चे पर बिल्कुल ध्यान न देना या चिढ़ होना, माँ और बच्चे के लिए ख़तरनाक हो सकता है।

इसी की उलट कंडीशन पोस्टपार्टम एंग्ज़ायटी है, जिसमें माँ, बच्चे को लेकर अतिरिक्त सतर्क हो जाती है। सफाई के प्रति ऑब्सेशन से लेकर किसी को बच्चे को छूने न देना, बाहर नहीं निकलने देना, हर समय बच्चे के स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता लगी रहना आदि शामिल है। इनमें से कोई, या कुछ या सभी लक्षण मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं, तो मनोवैज्ञानिक चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

PPD से बचाव

डॉक्टर नाजिया खान के मुताबिक हॉर्मोनल उथल-पुथल बड़ी वजह है और कोई एक निश्चित कारण नहीं है, फिर भी स्वस्थ पारिवारिक माहौल, स्वस्थ रिश्ते, वर्क-लोड कम करना, लोड शेयरिंग, इमोशनल नीड्स का भी ख़याल रखना, स्वस्थ खान- पान, दुश्चिंताओं, आशंकाओं को शेयर करने वाला, सुनने, समझने, सहानुभूति और सलाह देने वाला सपोर्ट सिस्टम होना, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां हों तो काउंसलिंग और मेडिसिन्स, थेरेपी का ध्यान रखने से काफ़ी हद तक बचाव हो सकता है।

ट्रीटमेंट

डॉक्टर नाजिया खान ने कहा कि अगर बेबी ब्लूज़ वाले लक्षण अधिक गम्भीरता से प्रकट हों, दो हफ़्ते से ज़्यादा तक रहें तो चिकित्सकीय सहायता ज़रूर लें, नहीं तो यह काफ़ी लम्बे समय तक चल सकता है। यहाँ तक कि सुसाइडल टेंडेंसीज़ और बच्चे के प्रति लापरवाही या चिढ़ उसके लिए ख़तरनाक भी हो सकती है। इसी का उलट पोस्टपार्टम एंग्ज़ायटी है, जिसमें माँ अतिरिक्त सतर्क हो जाती है बच्चे को लेकर। चाहे एक्सट्रीम कंडीशन्स बहुत कम होती हों, पर एहतियात ज़रूरी है। आवश्यक थेरेपी और ज़रूरी लगे तो दवाइयां प्रोफेशनल्स सजेस्ट करेंगे।

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परिवार का सहयोग है जरूरी

परिवार का सहयोग बहुत ज़रूरी है। मदर्स डे पर आपको समझना होगा माँ कभी थकती नहीं, माँ कभी सोती नहीं, माँ तो ममता, त्याग, प्रेम की मूरत है वाला मातृत्व का ओवर ग्लोरिफाइड महिमामंडन बन्द करके हर माँ को वह इंसान समझें, जिसके शरीर को आराम, अच्छे भोजन और नींद की ज़रूरत है हीलिंग के लिए। और उसका भावनात्मक सपोर्ट, ख़ुद के बारे में अच्छा फ़ील कराना, हिम्मत बंधाना भी ज़रूरी है। ख़ासकर कोई पुराना हादसा हो तो उसे रिकॉल न कराएं, ताने न दें, लड़की होने पर विशेषकर। हालांकि पीएनडी लड़के के बाद भी देखा जाता है क्योंकि मेल हॉर्मोन्स बनते हैं फिर उनके लेवल में अचानक चेंज होता है। 

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खुद के लिए निकालें वक्त

डॉक्टर नाजिया ने कहा कि न्यू मदर को भी अपने खाने, पीने, सोने, एक्सरसाइज़, मेडिटेशन आदि के लिए समय मैनेज करना ज़रूरी है।

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