अस्थमा मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। पहला एलेर्जिक अस्थमा और दूसरा ऑक्यूपेशनल अस्थमा। इस बीमारी के शिकार रोगियों को प्रदूषण, धुएं और बारिश के मौसम में ज्यादा दिक्कत हो सकती है। बरसात के मौसम में कम धूप के कारण विटामिन-डी की कमी और इस दौरान ठंडा वातावरण अस्थमा या सांस की बीमारी के लक्षणों को बढ़ाता है। इसी वजह से घरघराहट, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों के वायु मार्ग में सूजन या जकड़न का कारण बनता है और सामान्य रूप से सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
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इन वजहों से भी बढ़ जाती है दिक्कत
बढ़ी हुई फंगस
धूल मिट्टी और लगातार बारिश होने के कारण आस पास के मौसम में फंगस का लेवल अधिक बढ़ जाता है। यह चीजें सांस के मरीजों के लिए नुकसानदायक होती हैं और ब्रांकाइटल डिसऑर्डर का खतरा बढ़ा देती हैं।
वायरल इंफेक्शन
बारिश के मौसम में बहुत सारे बैक्टीरिया और वायरस वातावरण में फैल जाते हैं और इनके कारण आपको विभिन्न प्रकार की एलर्जी हो सकती है। जिससे आपको शॉर्टनेस आफ ब्रीदिंग, सांस लेने में तकलीफ या अस्थमा अटैक बढ़ जाते हैं।
बचाव के उपाय
- सांस के मरीजों को या दमा के रोगियों को पशुओं के साथ संपर्क में नहीं आना चाहिए और अगर आपके घर में कोई पालतू है तो आपको हमेशा उसे अपने कमरे से दूर ही रखना चाहिए।
- अपने टॉयलेट और बाथरूम जैसी जगहों को अच्छी तरह से ब्लीच से सफाई करें। ताकि उनमें किसी प्रकार की फंगस का जमाव न हो सके।
- आपको किसी भी हालत में अपनी दवाइयों को लेना नहीं छोड़ना है।
- इसके साथ ही एक संतुलित मील भी खाएं ताकि आपको पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल सके। इसके लिए आप किसी प्रोफेशनल डायटिशियन से बात कर सकते हैं।
- गर्म पानी की मदद से सभी तकिया, तकिया कवर, रग, बेड शीट को धोएं।
- दवा हमेशा अपने पास रखें और इनहेलर का हर दिन इस्तेमाल करें
- प्रदूषण में बाहर निकलते वक्त डबल मास्क लगाकर निकलें
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Disclaimer: यह जानकारी आयुर्वेदिक नुस्खों के आधार पर लिखी गई है। इंडिया टीवी इनके सफल होने या इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है। इनके इस्तेमाल से पहले चिकित्सक का परामर्श जरूर लें।