गर्भावस्था या प्रेग्नेंसी के दौरान लिए गए आहार का गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य एवं व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। मां के द्वारा लिया गया आहार शिशु के विकास, विचार एवं व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। मां के खाने के प्रकार एवं उसके गुणों से शिशु के अंगों की क्रियानिधि भी प्रभावित होती है, उसकी ग्रंथियां भी इस आहार के कारण अपने स्त्रावों को नियंत्रित एवं नियमित करती है। आयुर्वेद के जाने माने चिकित्सक डॉ अबरार मुल्तानी से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि किस तरह गर्भावस्था में खाए गए आहार का शिशु के स्वास्थ्य पर एवं शारीरिक क्रिया विधि पर क्या प्रभाव पड़ता है, साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कौन सी चीजें अनियंत्रित रूप में खाने पर किस तरह गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचाती हैं।
डेयरी प्रोडक्ट
यूं तो डेयरी प्रोडक्ट जैसे कि दूध, दही, घी, मक्खन आदि बेहद फायदेमंद होते हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा सेवन कर लिया जाए तो इसके भी नुकसान होते हैं। प्रेग्नेंसी के समय डेयरी प्रोडक्टस का अधिक सेवन करने से शिशु का मस्तिष्क मंद होता है, वह नाजुक होता है, उसे मोटापा, हृदयरोग, चर्मरोग, म्यूकस या कफ बनाना, लिवर, स्पलीन एवं गाल ब्लेडर के रोग, ट्यूमर तथा कैंसर रोग होने की संभावना अधिक होती है।
तेजी से फैल रहा है डेंगू और मलेरिया, मच्छरों से अपने परिवार का ऐसे करें बचाव
अन्न, दालें एवं पकी हुई सब्ज़ियाँ
गेंहू, ज्वार, मक्का, बाजरा, दालें और पकी हुई सब्ज़ियाँ यदि माँ अधिक या प्रचुर मात्रा में खाती है तो शिशु शारीरिक एवं मानसिक रूप से शक्तिशाली, अच्छा मेटाबोलिज्म, अच्छी रोग प्रतिरोधक शक्ति वाला ज्ञानी और सुंदर होगा।
कम पकी हुई सब्ज़ियाँ
अगर वहीं आप कम पकी हुई सब्जियां प्रेग्नेंसी के दौरान खाएंगी तो शिशु कमज़ोर एवं उलझे हुए स्वभाव का होगा। उसे त्वचा रोग, श्वसन तंत्र के रोग, किडनी एवं आंतों से संबंधित रोगों की संभावना होती है।
फल एवं मेवें
जो माँ गर्भावस्था में समय जरूरत से ज्यादा फल, जूस एवं मेवे का सेवन करती है उसके शिशु अत्यधिक भावुक, संवेदनशील, घबराहट वाले व्यवहार वाला, गंभीर प्रकृति का हो सकता है। ऐसे शिशुओं में पाचन एवं प्रचननतंत्र की दुर्बलता भी पायी जाती है।
Air Pollution: दिल्ली की जहरीली हवा में अपने फेफड़ों का रखें ख्याल, यहां जानें प्रदूषण से बचने के उपाय
मांस, अण्डे एवं मछली
मांस, अण्डे एवं मछली भी प्रेग्नेंसी में फायदेमंद होता है लेकिन अगर आप इसकी अधिकता कर दें तो शिशु ज़िद्दी या हठधर्मी व्यवहार का हो सकता है। उसमें हृदय, छोटी आँत, पाचनतंत्र की दुर्बलता, कैंसर एवं ट्यूमर होने की संभावना होती है।
मसालेदार एवं तीक्ष्ण भोजन
अत्यधिक मिर्च मसाला एवं तीक्ष्ण भोजन लेने पर माँ का शिशु निम्न गुणों से युक्त होगा - चिड़चिड़ा स्वभाव, भावनात्मक असुरक्षा, अनियमित ब्लडप्रेशर एवं हृदयगति हो सकती है। साथ ही शिशु में हृदयरोग, किनीरोग, त्वचा रोग तथा प्रजननतंत्र संबंधी रोगों की संभावना हो सकती है।
शुगर एवं अन्य मीठे खाद्य पदार्थ
जो मां प्रेग्नेंसी में अत्यधिक मीठा खाती है उनके पेट में पलने वाले शिशु का दिमाग कमजोर हो सकता है। स्वभाव में घबराहट होती हैं। इन्हें मोटापा, मधुमेह, त्वचा रोग, मस्तिष्क संबंधी रोग, पाचन तंत्र के रोग, किडनी एवं प्रजनन-तंत्र के रोग होने की संभावना अधिक होती है।
इससे हमें ये पता चलता है कि अन्न, दालें एवं पकी हुई सब्ज़ियां स्वास्थ्य के लिये सबसे लाभदायक हैं। बाकि आहार भी आवश्यक है लेकिन थोड़ी मात्रा में। अधिक मात्रा में डेयरी प्रोडक्ट, मिठाई, मिर्च-मसाला और मांसाहार न लें। याद रखें गर्भावस्था के दौरान जो पोषण शिशु को प्राप्त होता है उसका मुकाबला उम्र के किसी भी पड़ाव में किया गया अत्यन्त पौष्टिक आहार भी नहीं ले सकता। इसलिए अपने शिशु को श्रेष्ठ आहार का पोषण दें।
Uric Acid: यूरिक एसिड का लेवल कम करने के लिए अपनाएं ये नुस्खें, किचन में मिलेगा सामान