बिगड़ती लाइफस्टाइल के चलते युवाओं में तेजी से डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है। डायबिटीज दो तरह की होती हैं एक टाइप-1 और दूसरी टाइप-2 डायबिटीज। शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से ये खतरा पैदा होता है। अब सवाल उठता है कि डायबिटीज टाइप 1 और टाइप 2 में क्या अंतर होता है। दरअसल जो लोग टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित होते हैं, उनके शरीर में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता है। टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों के शरीर में इंसुलिन तो बनता है लेकिन उतना नहीं जितना जरूरी होता है। इन दोनों टाइप के डायबिटीज में ब्लड शुगर लेवल हाई रहता है।
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के लक्षण
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के लक्षण काफी हद तक एक जैसे होते हैं, लेकिन शरीर में अलग तरह से दिखाई देते हैं। जैसे टाइप-2 डायबिटीज होने पर तुरंत लक्षण नज़र नहीं आते हैं। इसमें कई साल लग जाते हैं। कई बार टाइप-2 डायबिटीज के मरीज में कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं। वहीं टाइप-1 डायबिटीज के लक्षण होते ही नज़र आने लगते हैं। कई बार सिर्फ कुछ हफ्तों में ही लक्षण दिखने लगते हैं। टाइप-1 डायबिटीज किसी भी उम्र में हो सकती है। डायबिटीज में ये कॉमन लक्षण दिखते हैं।
- बार-बार पेशाब आना
- बहुत ज्यादा प्यास लगना
- बहुत भूख लगना
- बहुत कमजोरी महसूस होना
- धुंधला दिखाई देना
- चोट या घाव देरी से भरना
- स्वभाव में चिड़चिड़ापन
- मूड स्विंग होना
- अचानक वजन कम होना
- हाथ-पैर सुन्न होना
- हाथों-पैरों में झुनझुनी होना
टाइप-1 डायबिटीज के कारण
टाइप-1 डायबिटीज कारण पारिवारिक इतिहास को भी माना जा सकता है। ऐसी स्थिति शरीर अग्नाशय में कोशिकाओं पर अटैक करता है। जिसकी वजह से कोई इंसुलिन नहीं बनता है। हमारा इम्यून सिस्टम पैनक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स पर अटैक कर देता है और उसे खत्म कर देता है।
टाइप-2 डायबिटीज के कारण
वहीं टाइप-2 डायबिटीज के कारण मोटापा, खराब लाइफस्टाइल, खाने-पीने की आदतें और जेनेटिक भी हो सकते हैं। टाइप-2 डायबिटीज में कोशिकाएं इंसुलिन के साथ नॉर्मल संपर्क नहीं कर पाती हैं जिससे पर्याप्त शर्करा नहीं मिलती है। वहीं दूसरी ओर अग्न्याशय रक्त शर्करा के लेवल को मैनेज नहीं कर पाता है।
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