Delhi-NCR AQI: इस समय दिल्ली-एनसीआर की सबसे जहरीली है। एयर क्वालिटी इंडेक्स इस समय 400 के पार चल रहा है और आसमान की गैस के चैंबर की तरह नजर आ रहा है। ऐसे में ये फेफड़ों के लिए सबसे ज्यादा नुकासनदेह है। इस वजह से कि जिस हवा में आप सांस ले रहे हैं वो आपके फेफड़े तक जा रही है और नुकसान का कारण बन रही है। सबसे ज्यादा ये ब्रोंकाइटिस और अस्थमा (bronchitis and asthma) जैसी बीमारियों को ट्रिगर कर सकती है या फिर जिन्हें ये पहले से है उन्हें बीमार कर सकती है। ऐसे ही लोगों को इन दोनों के बीच का फर्क समझना चाहिए। जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
ब्रोंकाइटिस और अस्थमा में क्या अंतर है?
अस्थमा आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों के संयोजन के कारण होता है। ये धुआं और प्रदूषण जैसी स्थिति की वजह से हो सकता है। ब्रोंकाइटिस वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होता है और यह एक कम समय तक रहने वाली बीमारी है। पर क्रोनिक ब्रोंकाइटिस लंबे समय तक रहता है और यह ऐसे पदार्थों के कारण होता है जो फेफड़ों और वायुमार्ग में जलन पैदा करते हैं। अस्थमा होने पर श्वास नलियों में सूजन होकर श्वसन मार्ग सिकुड़न होती है। इन वायुमार्गों यानी ब्रॉनकायल टयूब्सके माध्यम से हवा फेफड़ों के अन्दर और बाहर जाती है और अस्थमा में यह वायुमार्ग सूजे हुए रहते हैं जिससे सांस लेने में भी दिक्कत होती है।
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खराब AQI कैसे बढ़ता है इसका खतरा
जब हवा खराब होती है तो सबसे पहले ये आपके फेफड़ों तक पहुंचकर इंफेक्शन पैदा करती है। ऐसी स्थिति में ब्रोंकाइटिस हो जाता है। दूसरी स्थिति में जिन लोगों में अस्थमा की समस्या पहले से होती है इसमें खराब हवा दोबारा से ट्रिगर कर सकती है और हवा में ऑक्सीजन की कमी की वजह से सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।
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तो, आप इन दोनों ही स्थितियों से बचना चाहते हैं तो पहले तो घर से बाहर निकलने से पहले मास्क लगा लें। दूसरा, अगर आपको इन दोनों में से कोई भी दिक्कत पहले से ही है तो ज्यादा सतर्क रहें। डॉक्टर से बात करें, कुछ चीजों को लेकर परहेज करें और समय पर अपनी दवाइयों को लें। साथ ही लक्षण दिखते ही घर पर इलाज की जगह डॉक्टर से तुरंत दिखाकर सही इलाज लें।