हर मां-बाप चाहता है उसका बच्चा अच्छी तालीम ले। उसकी परवरिश बेहतर माहौल में हो जिसके लिए घर के बाद दूसरी जगह होती है उसका स्कूल और इसके लिए पैरेंट्स वो हर मुमकिन कोशिश करते हैं ताकि टीचर से लेकर अच्छे स्टूडेंट्स का साथ मिल सके लेकिन अब तो बच्चों को स्कूल भेजकर भी पैरेट्स इत्मिनान से नहीं रह सकते। दरअसल, स्टडी ही ऐसी आई है, सर्दी-जुकाम की तरह बच्चों में डिप्रेशन की बीमारी डेवेलप हो रही है। फिनलैंड यूनिवर्सिटी ने 11 से 16 साल के 7 लाख बच्चों के हेल्थ कार्ड को analyse कियाऔर इससे ये पता चला कि- अगर क्लास में एक बच्चा भी डिप्रेशन की गिरफ्त में है तो चांसेज हैं कि उनके दोस्तों में भी ये लक्षण आ जाएं। मतलब ये कि सर्दी-जुकाम की तरह डिप्रेशन भी दूसरे बच्चों में ट्रांसफर होता है। सिर्फ बच्चे ही नहीं स्टडी के मुताबिक बड़े भी डिप्रेशन की गिरफ्त में हैं।
देश में छह में से एक शख्स एंग्जाइटी यानि बेचैनी से परेशान है पिछले तीन साल में ऐसे मरीजों की संख्या 60% बढ़ी है। रिसर्च कहती है--एंग्जाइटी की वजह से लोग बैड मूड, उदासी और असहाय महसूस करते हैं। अब समझने वाली बात ये है कि अवसाद की ये बीमारी संक्रामक रोग बनी कैसे? तो इसकी बड़ी वजह है--मेंटल प्रेशर जो अलग-अलग उम्र में अलग-अलग तरीके का होता है। इसके अलावा- बचपन की बैड मेमोरीज और environmental conditions से भी ये ट्रिगर होता है और यही वजह है कि--पॉजिटिव एटीट्यूड रखने वाले लोग तेजी से घट रहे हैं। देश के 35% लोगों ने ये माना कि वो निगेटिव इमोशंस की गिरफ्त में हैं। वैसे ये पता चलना और एक्सेप्ट कर लेना कि-- आप डिप्रेशन में हैं आधी जीत है क्योंकि ज्यादातर मामलों में जो इसकी गिरफ्त में होते हैं उनको अपनी बीमारी का पता ही नहीं होता। तो, चलिए आज बच्चों से लेकर बड़ों तक को पॉजिटिविटी का डोज योगगुरु से दिलवाते हैं। निगेटिव इमोशंस से बचने के लिए योगिक इम्यूनिटी डेवलप करते हैं।
W HO का अलर्ट
- जीवन से नाखुश 35% भारतीय
- निगेटिव इमोशंस सेहत पर खतरा
डिप्रेसिव डिसऑर्डर
- गिरफ्त में 20 करोड़ से ज्यादा लोग
- हर 7 में से 1 को मेंटल डिसऑर्डर
क्यों होता है डिप्रेशन ?
- जीवन में कोई हादसा
- आर्थिक तंगी
- हार्मोनल चेंजेज
- मौसम में बदलाव
डिप्रेशन के लक्षण
- रेटिना में बदलाव
- नींद नहीं आना
- बात-बात पर गुस्सा
- नज़र कमज़ोर होना
- पाचन खराब होना
- सिर और पेट में दर्द