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देश में 20 लाख से अधिक लोग मोतियाबिंद से पीड़ित, ये बीमारी है अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह

ग्लूकोमा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए छह से 12 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया गया है। यह भारत में अंधेपन की मुख्य वजह है।

Written by: India TV Health Desk
Updated on: March 13, 2022 8:19 IST
Cataract- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK Cataract

Highlights

  • अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह ग्लूकोमा।
  • दुनियाभर में ग्लूकोमा के कारण करीब 45 लाख लोगों की आखों की रोशनी चली गयी है।

काला मोतियाबिंद यानी ग्लूकोमा दुनिया भर में लाखों लोगों की आंखों की रोशनी छीन चुका है लेकिन फिर भी इसे लेकर समाज में पर्याप्त जागरूकता का अभाव है। ग्लूकोमा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए छह से 12 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह मनाया गया है। यह भारत में अंधेपन की मुख्य वजह है।

अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह ग्लूकोमा 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में ग्लूकोमा के कारण करीब 45 लाख लोगों की आखों की रोशनी चली गयी है। भारत में कम से कम एक करोड़ 20 लाख लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं और कम से कम 12 लाख लोग इसकी चपेट में आकर अंधे हो चुके हैं। देश में ग्लूकोमा के 90 फीसदी से अधिक मामले पकड़ में नहीं आते हैं।

लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञ डॉ विराट ने आईएएनएस से कहा कि वैश्विक स्तर पर अंधेपन की दूसरी सबसे बड़ी वजह ग्लूकोमा है। डॉ विराट का कहना है कि अगर समय पर इसकी जांच की जाए और उपचार शुरू कर दिया जाए तो इसे रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा में आंखों पर दबाव बढ़ जाता है जिसे इंट्राओकुलर प्रेशर कहते हैं और यह ब्लड प्रेशर जैसा ही होता है। इंट्राओकुलर प्रेशर आंखों पर पड़ने वाला फ्लूयड का दबाव है।

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गंभीर है ये बीमारी

दिल्ली के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ डॉ विनीत सहगल ने कहा कि ग्लूकोमा की दवा बीच में छोड़ देना काला मोतियाबिंद के खिलाफ लड़ाई में हार की मुख्य वजह है। डॉ विनीत ने बताया कि शुरूआती चरण में ग्लूकोमा के कोई लक्षण सामने नहीं आते हैं। न ही कोई दर्द महसूस होता है और न ही आंखों में रोशनी की कमी। एक बीमारी चुपचाप आती है और यह आंखों के लिए धीमे जहर के जैसी है। उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा के मरीजों को यह बताया नहीं जाता है कि बीच में दवा छोड़ने का क्या परिणाम होगा जिसके कारण इसकी दवा लोग अक्सर बीच में छोड़ देते हैं , जिससे बीमारी और अधिक गंभीर हो जाती है।

ग्लूकोमा बीमारी को खत्म नहीं किया जा सकता

डॉ विनीत ने बताया कि ग्लूकोमा के मरीजों को यह जानना होगा कि दवा से ग्लूकोमा को सिर्फ नियंत्रित किया जा सकता है, खत्म नहीं। ग्लूकोमा की दवा महंगी होने के कारण भी कई बार मरीज इसे लेना बंद कर देते हैं जिससे अंधेपन का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि ग्लूकोमा की कुछ दवाओं ने आंखों में लालिमा आ जाती है या आंखों के इर्दगिर्द काले धब्बे आ जाते हैं, जिसके कारण कई मरीज खासकर महिलायें, बिना परिणाम की चिंता किये दवा को बीच में ही छोड़ देती हैं।

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लोगों को जागरूक करना जरूरी 

नेत्र विशेषज्ञ डॉ रितिका सचदेव ने कहा कि लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करना जरूरी है क्योंकि इसका कोई लक्षण दिखता नहीं है और यह ऑप्टिक नर्व को क्षतिग्रस्त करके दृष्टिहीनता लाती है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों के परिवार में मधुमेह, हाइपरटेंशन और ब्लड सर्कुलेशन से संबंधी बीमारियां हैं, उन्हें इसके प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिये।

इनपुट - आईएएनएस

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