First Baby Kick In Pregnancy: मां बनना जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह ऐसा सुखद एहसास होता है जिसका इंतजार हर महिला को होता है। हालांकि ये काफी नाजुक समय भी होता है जिसमें गर्भवती महिला को खुद के साथ गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत का भी ध्यान रखना पड़ता है। गर्भ में पल रहा शिशु पूरी तरह सुरक्षित है इस बात का अंदाजा बच्चे के लात मारने से भी लगाया जाता है। इसे किक मारना या क्विकनिंग कहा जाता है। प्रेगनेंट महिला को इस पल का बेसब्री से इंतजार रहता है। क्योंकि क्विकनिंग के दौरान गर्भवती सबसे पहली बार इसके जरिए गर्भ में पल से शिशु की हलचल को महसूस करती है। लेकिन क्या आप जानती हैं आखिर क्यों प्रेगनेंसी में होती है क्विकनिंग। क्विकनिंग कब और किस माह से शुरू होती है।
क्या होती है क्विकनिंग (Quickening)
क्विकनिंग एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल गर्भ में किसी चीज से स्पंदन का अनुभव करने से होता है। आम भाषा में इसे बच्चे का पेट में लात मारना या किक करना कहते हैं। प्रेगनेंट महिला को इसका एहसास पहली बार प्रेगनेंसी के 20-22 सप्ताह में होती है। वहीं जब कोई महिला दूसरी या तीसरी बार गर्भवती होती है तो उन्हें क्विकनिंग का अनुभव लगभग 16-18 सप्ताह में ही होने लगती है। प्रेगनेंसी के सातवें या आठवें महीने में यह हचलच बहुत तेज हो जाती है। लेकिन प्रेगनेंसी के 36-37 सप्ताह में गर्भ में बच्चे के बढ़ते वजन, कम तरल पदार्थ और गर्भाशय के अंदर कम जगह उपलब्ध होने पर यह हलचल कम भी हो जाती है।
गर्भ में बच्चे के मूवमेंट का कारण
प्रेगनेंसी में क्विकनिंग या बच्चे की मूवमेंट का कारण अलग-अलग हो सकता है। कहा जाता है कि गर्भ में बच्चे जोड़ों को स्ट्रेच करने, हिचकी लेने, पलक झपकाने, डकार लेने और किक मारने के लिए मूवमेंट करते हैं।
क्या प्रेगनेंसी में रात के समय ज्यादा होती है क्विकनिंग
कई प्रेगनेंट महिलाओं का कहना है कि बच्चे गर्भ में रात के समय ज्यादा मूवमेंट करते हैं। हालांकि यह चिंता की बात नहीं है। कुछ बच्चे रात के समय ज्यादा किक मारते हैं तो कुछ दिन में। शिशु की हलचल या मूवमेंट कभी भी हानिकारक या चिंता का विषय नहीं होती। रात या दिन दोनों की मूवमेंट बिल्कुल नॉर्मल है।
मूवमेंट पर रखें ध्यान
सातवें माह की प्रेगनेंसी में डॉक्टर्स भी गर्भ में पल रहे शिशु की मूवमेंट पर ध्यान रखने की सलाह देते हैं। वैसे तो गर्भ में बच्चे ज्यादा समय तक सोए रहते हैं लेकिन फिर भी हर आधे घंटे में उनकी मूवमेंट होनी जरूरी होती है जोकि मां को महसूस होती है। जैसे-जैसे डिलीवरी की समय नजदीक आती है बच्चे की मूवमेंट भी बदलाव होता है।
दिखे ये असामान्य गतिविधियां तो तुरंत करें डॉक्टर से संपर्क
डॉक्टर समय-समय पर बच्चे की जांच के लिए गर्भवती महिला को बुलाते हैं। लेकिन अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह अगर कोई जानता है, तो वह आप हैं। आपको जब भी गर्भ में पल रहे शिशु को लेकर कोई असहजता मसहूस तो तुंरत डॉक्टर की मदद लें। इसके लिए बिल्कुल भी प्रतीक्षा न करें। इसके साथ ही अगर ये गतिविधियां या संकेत दिखे तो भी तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। जैसे-
- 24वें हफ्ते के बाद भी गर्भ में शिशु की मूवमेंट न हो, तो डॉक्टर से संपर्क करें।
- कम या ना के बराबर मूवमेंट होने पर।
- असामन्य मूवमेंट होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलें।
- प्लेसेंटा से पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने पर शिशु कम मूवमेंट करते हैं ऐसे में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।