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2050 तक पैदा हो जाएगा ये बड़ा खतरा, हर साल 1 करोड़ लोगों की हो सकती है मौत, WHO की रिपोर्ट ने चौंकाया

Antibiotics Resistance (AMR)-एंटीबायोटिक्स शरीर को बीमारियों से बचाते हैं, लेकिन इनके ज्यादा होने पर शरीर रिस्पॉंस करना बंद कर देता है। अब कोरोना महामारी के बाद एंटीबायोटिक यानि सुपरबग को लेकर WHO ने बड़ा खतरा बताया है। जानिए क्या है पूरा मामला?

Written By: Bharti Singh
Published on: May 08, 2024 20:02 IST
Antibiotics Resistance - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Antibiotics Resistance

पूरी दुनिया में तबाही मचाने के बाद अब कोरोना के साइड इफेक्ट सामने आ रहे हैं। हाल ही में कोविड-19 की वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर खूब चर्चा हुई। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO ने कोरोना के दौरान दी गई एंटीबायोटिक्स दवाओं के ओवरडोज को लेकर खतरा जताया है। डब्ल्यूएचओ के एक नए रिसर्च में सामने आया है कि कोविड ट्रीटमेंट में दी गई एंटीबायोटिक्स ने सुपरबग यानि एंटिबाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) को तेजी से फैलाने का काम किया है।

एएमआर एक प्रतिकूल क्षमता है जो शरीर में ज्यादा एंटीबायोटिक्स जाने से पैदा होती है। इससे एक समय के बाद शरीर पर एंटीबयोटिक दवाओं का असर कम होने लगता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिना जरूरत के एंटीबायोटिक्स देने से फायदे की जगह नुकसान होता है।

कोविड में बिना वजह दी गईं एंटीबायोटिक्स 

WHO की ओर से 2020 से 2023 के बीच करीब 65 देशों में कोविड की वजह से भर्ती हुए करबी साढ़े चार लाख लोगों पर ये रिसर्च किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो जितने लोग कोरोना की वजह से अस्पतालों में भर्ती हुए थे उनमें से सिर्फ 8 प्रतिशत मरीजों को बैक्टीरियल इंफेक्शन हुआ था। ऐसे लोगों को एंटीबायोटिक्स की जरूरत थी। जबकि सावधानी की वजह से 75 प्रतिशत मरीजों को भी एंटीबायोटिक दवाएं दे दी गईं। सबसे ज्यादा एंटीबायोटिक उन मरीजों को दी गईं जिनमें कोविड के लक्षण बहुत ज्यादा थे। हालांकि मीडियम और कम लक्षण वाले लोगों को भी एंटीबायोटिक दवाएं दी गई थीं। 

सुपरबग है सबसे बड़ा खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो आने वाले सालों में सुपरबग यानि जब शरीर पर एंटीबायोटिक दवाएं असर करना बंद कर देंगी, सबसे बड़ा खतरा पैदा होगा। आंकड़ों की मानें तो 2019 में सुपरबग की वजह से करीब 12.7 लाख लोगों की जान गई और ये सिलसिला यू ही चलता रहा तो 2050 तक हर साल 1 करोड़ लोगों को जान गंवानी पड़ सकती है।

 

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