गुरुग्रामः इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के अध्यक्ष और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने शुक्रवार को गुरुग्राम स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। आइए जानते हैं ओपी चौटाला के राजनीतिक सफर के बारे में।
कौन थे ओम प्रकाश चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला को राजनीति विरासत में मिली। वह देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल के बेटे थे। ओपी चौटाला देवी लाल के चार बेटों में सबसे बड़े थे। पिता की राजनीतिक विरासत उन्होंने ही संभाली और हरियाणा के चार बार मुख्यमंत्री बने। वह पहली बार 1989 में मुख्यमंत्री बने और 1991 तक सीएम पद पर रहे। 1991 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें कई बार राजनीतिक उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। साल 1999 में ओपी चौटाला ने बीजेपी की मदद से हरियाणा के एक बार फिर मुख्यमंत्री बने।
ओपी चौटाला का जन्म 1 जनवरी, 1935 को सिरसा के चौटाला गांव में हुआ था। चौटाला के पिता चौधरी देवी लाल हरियाणा के जाने-माने राजनेता थे। पिता की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए चौटाला किसानों और जाटों के लिए आवाज उठाने लगे। धीरे-धीरे वह पिछड़ों के बड़े नेता बन गए। जाट समुदाय में उनकी अच्छी पैठ मानी जाती थी। चौटाला के सभी राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध थे।
कब-कब रहे हरियाणा के सीएम
- पहला कार्यकाल (1989-1990): ओपी चौटाला ने पहली बार 2 दिसंबर 1989 को मुख्यमंत्री का पद संभाला था। हालांकि, उनका कार्यकाल संक्षिप्त था, जो उनकी सरकार के बर्खास्त होने के बाद 22 मई 1990 तक चला।
- दूसरा कार्यकाल (1990): राजनीतिक उथल-पुथल के बाद 12 जुलाई, 1990 को चौटाला को फिर से मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया, लेकिन यह कार्यकाल और भी छोटा था। वह मात्र पांच दिन सीएम रह सके।
- तीसरा कार्यकाल (1991): 1991 में चौटाला एक बार फिर मुख्यमंत्री नियुक्त हुए और 22 मार्च से 6 अप्रैल 1991 तक पद पर रहे।
- चौथा कार्यकाल (1999-2005): चौटाला का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे लंबा कार्यकाल 24 जुलाई 1999 से 5 मार्च 2005 तक उनका चौथा कार्यकाल था। इस दौरान, उन्होंने राज्य के कृषि और ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के उद्देश्य से कई पहलों पर काम किया।
ओपी चौटाला के चौथे कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। वह जेल भी गए। 2005 के बाद हरियाणा में कांग्रेस की सरकार आई और वह फिर कभी सत्ता हासिल नहीं कर पाए। बाद में दोनों बेटे अभय और अजय के मतभेद के बाद पार्टी टूट गई। वर्तमान समय में हरियाणा विधानसभा में उनकी पार्टी के मात्र दो विधायक हैं। वह भी उनके ही परिवार के ही लोग चुनाव जीत पाए।