नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें भर्ती परीक्षाओं में हरियाणा के निवासियों को अतिरिक्त अंक देने की राज्य सरकार की नीति को रद्द कर दिया गया था। हरियाणा सरकार की नीति को ‘‘लोकलुभावन उपाय’’ करार देते हुए न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की अवकाशकालीन पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की नौकरियों में कुछ वर्गों के उम्मीदवारों को अतिरिक्त अंक देने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा निर्धारित सामाजिक-आर्थिक मानदंडों को असंवैधानिक करार दिया था।
कोर्ट ने बताया लोकलुभावन उपाय
पीठ ने कहा, ‘‘संबंधित निर्णय पर गौर करने के बाद, हमें इसमें कोई त्रुटि नहीं नजर आई। विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज की जाती हैं।’’ सुनवाई शुरू होते ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर विचार करने की अनिच्छा व्यक्त की और कहा, ‘‘अपने प्रदर्शन के आधार पर एक मेधावी उम्मीदवार को 60 अंक मिलते हैं, किसी और को भी 60 अंक मिले हैं, लेकिन केवल पांच कृपांक के कारण उसके अंक बढ़ गए हैं। ये सभी लोकलुभावन उपाय हैं। किसी को पांच अंक अतिरिक्त मिलने के कदम का आप किस तरह बचाव कर सकते हैं?’’
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी अपील
नीति को उचित ठहराते हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कहा कि हरियाणा सरकार ने उन लोगों को अवसर देने के लिए कृपांक नीति शुरू की, जो सरकारी नौकरियों से वंचित थे। वेंकटरमणी ने लिखित परीक्षा फिर से आयोजित करने के हाई कोर्ट के निर्देश का जिक्र करते हुए कहा कि सामाजिक-आर्थिक मानदंडों का क्रियान्वयन लिखित परीक्षा लिये जाने के बाद हुआ था, न कि सामान्य पात्रता परीक्षा (CET) के बाद। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ की थी अपील
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के 31 मई के आदेश के खिलाफ हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट ने 31 मई को हरियाणा सरकार की उस नीति को खारिज कर दिया था, जिसके तहत ‘‘ग्रुप C और ग्रुप D’’ पदों के लिए CET में कुल अंकों में राज्य के निवासी अभ्यर्थी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर पांच प्रतिशत बोनस अंक दिए जाने थे। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि कोई भी राज्य पांच प्रतिशत अंकों का लाभ देकर रोजगार को केवल अपने निवासियों तक सीमित नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा था कि, ‘‘प्रतिवादी (राज्य सरकार) ने पद के लिए आवेदन करने वाले समान स्थिति वाले अभ्यर्थियों के लिए एक कृत्रिम वर्गीकरण किया है।’’
क्या था राज्य सरकार का फैसला
दरअसल, राज्य सरकार की नीति मई 2022 में लागू की गई और इसने 63 समूहों में 401 श्रेणियों की नौकरियों को प्रभावित किया, जिनके लिए CET आयोजित की गई थी। हाई कोर्ट ने 10 जनवरी 2023 को घोषित CET परिणामों और 25 जुलाई 2023 के बाद के परिणामों को भी रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि उम्मीदवारों के CET अंकों के आधार पर पूरी तरह से एक नई मेधा सूची तैयार की जाए। (इनपुट- भाषा)
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