चंडीगढ़: हरियाणा की राजनीति के केंद्र में रहे जाट बेल्ट पर कांग्रेस एक बार फिर अपनी पकड़ बनाने में कामयाब रही है जहां से पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उसे बेदखल कर दिया था। ‘देसवाली पट्टी’ कहलाने वाली इस जाट बेल्ट में प्रमुख रूप से रोहतक और सोनीपत सीट आती है और हमेशा से ही चुनाव में दलों के लिए अहम रही हैं। लोकसभा चुनाव- 2024 में कांग्रेस ने इन दो सीट के अलावा राज्य की तीन अन्य संसदीय सीट पर भी जीत दर्ज की है।
कांग्रेस ने बीजेपी को पांच सीटों पर हराया
वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हरियाणा की सभी 10 सीट पर जीत दर्ज की थी। पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र पर कांग्रेस का दबदबा रहा है और राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा कई सालों से यहां के समीकरण बदलने और कांग्रेस के प्रभाव को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा ने हरियाणा की सभी 10 सीट पर जीत हासिल की और प्रमुख राजनीतिक परिवारों के ‘गढ़’ माने जाने वाले इस क्षेत्र की सीटों पर कब्जा कर लिया था।
हुड्डा के बेटे सबसे ज्यादा वोट से जीते
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हुड्डा परिवार के गढ़ माने जाने वाले रोहतक में जीत हासिल की थी और निर्वाचित दीपेंद्र सिंह हुड्डा को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा ने 2019 में सोनीपत से मैदान में उतरे कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी हराया था। पिछले लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करने वाली कांग्रेस ने इस चुनाव में वापसी की है। रोहतक से कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा ने भाजपा के मौजूदा सांसद अरविंद शर्मा को 3,45,298 मतों से मात दी है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हरियाणा की 10 लोकसभा सीट में सबसे अधिक अंतर से जीत दर्ज करने वाले उम्मीदवार हैं।
सोनीपत में भी मिली जीत
कांग्रेस ने सोनीपत में भी जीत का स्वाद चखा और पार्टी उम्मीदवार सतपाल ब्रह्मचारी ने भाजपा के मोहन लाल बादोली को हरा दिया। हरियाणा में कांग्रेस और देश में ‘इंडिया’ गठबंधन के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया देते हुए दीपेंद्र ने मंगलवार को कहा, ‘‘यह लोकतंत्र की जीत है। लोगों ने संविधान बचाने के लिए वोट दिया है।’’ पिछले आम चुनावों में भाजपा ने राज्य की बागड़ी पट्टी के सिरसा से भी जीत हासिल की थी, जहां उसे कभी कमजोर माना जाता था। हालांकि, पाला बदलकर आए नेताओं को सिरसा और जाट बहुल हिसार से मैदान में उतारना भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ।
बाहरी नेताओं पर दांव लगाना पड़ा उल्टा
लोकसभा चुनाव से पहले ही अशोक तंवर और रंजीत चौटाला भाजपा में शामिल हुए थे। तंवर पहले कांग्रेस में थे और बाद में आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हुए। उन्होंने चुनाव से पहले पाला बदला और भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें सिरसा से अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें कांग्रेस की दिग्गज नेता कुमारी शैलजा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा।
गुड़गांव सीट पर दी कड़ी टक्कर
इसी तरह, हरियाणा में भाजपा सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक रंजीत चौटाला ने भी भाजपा में शामिल होने के लिए विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। इसका इनाम भाजपा ने उन्हें हिसार से अपना उम्मीदवार बनाकर दिया लेकिन उन्हें कांग्रेस के जयप्रकाश से हार का सामना करना पड़ा। दक्षिण हरियाणा को अहिरवाल पट्टी भी कहा जाता है और यहां केंद्रीय मंत्री और गुड़गांव के सांसद राव इंद्रजीत सिंह भाजपा के सबसे प्रमुख नेता हैं। इस बार कांग्रेस ने उनके खिलाफ राज बब्बर को मैदान में उतारकर चुनौती पेश की। सिंह को हालांकि गुड़गांव सीट से 75,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत मिली लेकिन पिछले चुनाव में वह 3,86,256 मतों के अंतर से जीते थे।
इस चुनाव में राव इंद्रजीत ही नहीं, बल्कि भाजपा के अन्य विजयी उम्मीदवारों की जीत का अंतर भी कम हुआ। उदाहरण के लिए भाजपा के संजय भाटिया ने 2019 में करनाल सीट अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार से 6.56 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। केंद्रीय मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर ने 2019 में फरीदाबाद से कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी पर 6.38 लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। इस बार वह महज 1.72 लाख मतों के अंतर से ही जीत सके।
इनपुट-भाषा