चंडीगढ़: गेंहू और धान की फसल के बाद अक्सर किसान बची हुई पराली को जलाते हैं। इससे खेतों के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान होता है। धुंए की वजह से प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है। सरकार किसानों से पराली न जलाने की अपील भी करती है लेकिन किसान भी मजबूर होते हैं और वे पराली जला देते हैं। लेकिन अब हरियाणा सरकार पराली न जलाने का विकल्प लेकर आई है।
फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण के 15 सेट की चाबियां वितरित की गईं
कृषि और किसान कल्याण विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने कृषि विभाग तथा स्थानीय प्रशासन के प्रयास से फसल अवशेषों के उचित प्रबंधन को लेकर डेलॉयट इंडिया कम्पनी द्वारा बुधवार को स्थानीय कर्ण लेक पर किसानों को अनुबंध पत्र और फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण के 15 सेट की चाबियां वितरित की। इसके तहत करीब 8 करोड़ रुपये की लागत से 75 उपकरण किसानों को उपलब्ध करवाए गए हैं। ये उपकरण फसलों के अवशेष को जलाने की बजाय उसका उचित निस्तारण करने का काम करेगा। पर्यावरणीय प्रदूषण को न्यूनतम करने के उद्देश्य से यह कदम बहुत ही महत्वपूर्ण है।
डॉ. सुमिता मिश्रा ने कहा कि स्थानीय प्रशासन का यह सराहनीय प्रयास है। अगर यह प्रक्रिया सफल रही तो इस मॉडल को प्रदेश के अन्य जिलों में भी लागू करवाया जाएगा ताकि पराली जलाने की घटनाओं को रोका जा सके। ज्ञात हो कि हर साल फसल कटाई के बाद पराली जलाने से स्मॉग और प्रदूषण की भीषण समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में यह प्रयास हरित हरियाणा की राह पर एक बड़ा कदम है।